पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१९४

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३—कुछ फूल घर ले जाने को दिल करता है। ४-धभी बन जाने को सुब का मन चलता है। ये भाववाचक संज्ञाएँ हैं । संस्कृत में भावे “तुम्” होता है--ठितुम्” अन्तुम् आदि। “पठितुम्-“पढ़ने को । “पठितुं मनो मे--मेरा मन पढ़ने को है । साधारणतः कर्म कारक में कोई का प्रयोग प्रसिद्ध ही है। यदि श्राव- श्यक न हो, तो और बात है। १.गीता को सम्पूर्ण संसार मानता है। २--- सभी सनातनी हिन्दू गंश को मानते हैं। यहाँ गति” तथा “गा' कर्म कारक हैं मानने के। को’ का प्रयोग हैं। इसी तरह १-मैं इस घर को खूब चानता हूँ २—उस देश को मैं समझता हूँ। यहाँ भी कर्म में 'को' विभक्ति है। निर्विभक्विक प्रयोग यहाँ य न होंगे- १—गीता सम्पूर्ण संसार भानता है। २-सभी सनातनी हिन्दू गं मानते हैं। ३—-मैं यह घई खूब जानता हूँ। ४---वह देश मैं समझता हूँ ये प्रयोग यल हैं ! ‘क’ का प्रयोग आवश्यक है। परन्तु यहाँ के के बिना कर्म रहेगा-- १.-मैं यह रास्ता जानता हैं। २–इम गणित न्यूज समझते हैं; पर कविता नहीं समझ पाते ! दोनों तरह के प्रयोगों में सुक्ष्म अर्थ-भैद है। ‘६ सहायक-क्रिया की तरह जब हो- १---राम को अब पुस्तक पढ़ने दो २---मुझे दो धड़ी सो लेदे दो।