पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१९८

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( १५३ } ३-तुम को कोई सहायक ही नहीं मिलता ! ४---मुझे श्राप मिल गए, तो सब कुछ मिल गया ! थों कर्ता-कारक में को' विभक्ति रहेगी और कुर्म निर्विभक्तिक } विशेष विवरण क्रियाओं के ‘वाच्य-प्रकरण में दिया जाएगा । गौण कर्म मेंः प्रेरणार्थक क्रिया के गौण कर्म में ‘को' विभक्ति लगती है, यदि क्रियः इसी ( गौरा कर्म ) के लाभ की हो--- १-यशोदा कृष्ण को मक्खन खिलाती थीं । २-पिता पुत्र को पुस्तक पढ़ाता है। ३-अध्यापक छात्र को लेख लिखाता है। ४-पुत्र पिता को रजाई उढ़ाता है। यदि क्रिया तदर्थं न हो, ‘प्रयोजक' कता अपने लिए कुछ करा रही हो, तत्र गौण फर्म में को’ का प्रयोग नहीं होता, ‘से का होता है:- १–तु उस से चिट्ठी लिखा ले २ --मा बच्चे से साग मॅाती है। मतलब यह कि को’ सम्प्रदान में लगती है और से करण में । इसी लिए ‘तदर्थ तथा तृभिन्न अर्थं इन दोनों के प्रयोग से निकलते हैं । ‘राम चाकू से श्रम तराशता है' में चाकू' करण है । उसे ग्राम के स्वाद से क्या मतलब ! न उसे काटने से मतलब ! काटता पर है, परवश इसी तरह ‘मालिक नौकर से काम करता है । ‘को' में बात दूसरी है । सम्प्रदान में ‘ो' के प्रयोग सर्वजन-विदित हैं। कभी कहीं अधिकरण में भी देखा जाता है ।। ‘इस पुस्तक ने हिन्दी में व्याकरण की कमी को पूरा कर दिया इस वाक्य में कभी कर्म ‘को' विभक्ति के साथ है । 'कमी' पूरी हो गई । यहाँ 'कमी' कर्ता है, ‘पूरी’ उस का विधेय-विशेषण है, जिसे लोग ‘पूरक' भी कह देते हैं ! “हो गई अकर्मक क्रिया है। ‘कर देना” सकर्मक क्रिया है। यहाँ कमी पूरी कर दी यों निर्विभक्तिक में भी आ सकता है । परन्तु----