पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२०६

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बँगला आदि की ही तरह राजस्थानी में भी ‘२' प्रत्यय की इकल हैं- दाम का घर-राम रो घर' । परन्तु 'क' भी कहीं दिलाई पङता है । यश त्यर्थक भी ‘छ' इत्यय राजस्थानी में चलता है, और राजस्थानी व्याकरण के अनुसार हुन रहता है---‘महादेव मुरारका, रामचन्द्र प्रहलादकः

  • मुरारका' का अर्थ है---‘मुरार ( मुरारी } के' ( वंशज ) ! रास्थानी में

‘लड़का या बहुवचन है। यानी वहाँ ( लड़के या झी बाई )

  • या बहुवचन ! एक इन्चन-लड़के श्रा' ! उ ति पर

‘प्रह्लाद यदि बहु-न-रूप हैं । एवञ्चन होता-ह्वादको । इस ६ चलन रहीं है, क्योकि ई सि एक अनि घो न ऋइते । बहूत्र से देश ध्वलित होता हैं । राऽनं ऋद्धि का चित्र एरिचय इस अन् के प्रविष्टि में जरूर ! सारा यह किं , १, २, सम्बन्ध-प्र की इझता हैं । दूर-दर क ये पहुंचे हैं ! हिन्दी में विभक्तियाँ प्रकृति से इटा कर लिई जादी ई; राम ने रोटी खाई *राम से कह दो म के इक्का हु’ अदिः । इस का प्रभाव तद्धित-प्रत्यय ऊ’ पर भी पड़ा । यई 5 नृश्चम लिखा जाने लगा-म झा छर' । परन्नु न’ और ‘र' अवय सटा कर ही लिखें जाते हैं-अप बुर

  • तुम्हारा घर’ ‘ने तथा ३’ सुम्ब्न्छ-विभक्तियों को प्रभाव शा । थे विभ-

क्तियाँ सटर फर ही लिली दी है अपने ते इ इ गर है तेरे चार उौएँ हैं' । 'ने' स ३' विभक्तियः सटा कर क्यों लिखी जाती हैं । भगवान् जाने ! सर्द है, राजस्थानी का प्रभाव हो । मतलब इतने से %ि ३ ने भक्तियों की ही तरह ‘न' इत्यु भी सटा इ लिखे जाते हैं । सम्बन्ध-विभक्ति ही नै सटा कर लिखी जाती है । कक-विभरि ३ = छु बात नहीं ! कतई में लगने वाली ने विभक्ति प्रकृति से इश्क कर लिखते हैं.' ने भेजद किया ?' म कर भी लिख देते हैं-अपने भज किंवा १ सम्भव है, इस ( कृत-विभक्ति) ३” से पृथक्त्व प्रकट करने के लिए ही सन्न्ध-विभक्ति ( ने } खा फर लिखने लगे ह । ३’ को सूट कर लिखने के तो कई कारण है । पंजी में “साडे वाडे' में सूट कर है। डे’ र ‘रे इक ही चीज हैं। व्याकरण के इस ग्रन्थ में इस संबन्ध में इतना ही बहुत है। अधिक विद निरूक्त का विषय हैं। वहीं सब लिखना देखना चाहिए ।