पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२०८

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और भेदक भी वही काम करता है । गति-पद्धति भी एक ही है । तब फिर चेरे खरबूजे में ‘ते’ को ‘क’ न कह कर 'विशारा' ही क्ये न कहें १ । प्रश्न ठोक है । औदक' वही काम करता है, जो विशेष । गति-पद्धति भी वही हैं। फिर भी इसे { भेदङ' को } त्रिशेध नहीं कह सकतेः त्रिशे- पए-कल्य’ कइ सके हैं-- जैतो हूं । दोनों में अन्तर है। विशेष विपती बतलाता हैं और भेदक' अ-स्वामी का सम्बन्ध, या चिंता-सन्तति जैसा कोई चुम्वन्ध बतलाता है । *** म देखिए । मीठापन या मिठास ग्राम में है। लाल कड़ा' में का इँग ऋड़े में श्रोतत हैं। टेही लकड़ों में टेढ़ापन ‘लकड़ी में व्याह हैं । भूर्य बालक' में मूवतः छलक में हैं। परन्नु ‘तेर ला ’ पृथक् दोज है। दु’ अलग है-ला ' अशा ३। रा’ लड़के से तृ-दुत्र सुन्बन्द भर है। इसी तरह तुम्हारा घर में व और वत्व ः इम्बन्ध है । *नुभ’ और ‘अर' अलग-अलग हैं । एक तरह का सम्बन्ध भर दोनों का हैं। दोनों ज्ञाएँ और सुद्धा-प्रदिननि { सर्वनाम ) हैं। विशेगड़े श्रलग चीज है । इसी लिए व्याकरण में ‘भेद्य-भेदक' शब्द रखे गए हैं। किडी-की ने गलती से भे’ को ‘त्रिशेऽऽ' और 'भेद' को विशेषण कह दिया है ! संस्कृत में प्रसिद्ध है-- भेचं विशेष्त्रमित्याहुभेदकं तु विशेषम् । ••• ••• ... युत्पत्तिस्तु भेदकात् ।' ---यानी विशेष्य को भेद्य कहते हैं, और विशेष के भेद । आई? ( चि- क्ति } भेइक में लगी है--*राम पुत्रः पद्धति'-राम का लड़का बढ़ता है। हिन्दी में राम का जम्न्ध प्रत्यय ३ हा है और संस्कृत राम' में सुबन्त्र त्रिभक्ति प्रफट है। “तर पुत्रः पते' र 'छदः पत्र: एकति क्षेम दह के प्रयोग संस्कृत में होते हैं। पर द्विन्दी ऐस; जाह द्धिय सुन्दन्-प्रत्य है। लगा है, विभक ( ॐ, ने, १ } । तद्वितीय प्रत्यर्थ में भी अम्बन्ध प्रकट करते ही वह शक हे, की निक में । हिन्दी में दो के प्रश्नोत्र पृथक नृश्य को “भेश र विशे के भेदक कई दिया है, वह ठीक नहीं ! वि ष्य और ध तथः विशेषण र भेदक में जो अन्तर है, ॐ बतलाया