पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२०९

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है इमने । जो काम देल करता है, वही भैंस भी करता है; तो इस से वे दोनों एक ही तो न हो जाएँगे न ! अन्य-व्यवच्छेद दोनो ही करते हैं शेख भी अौर भेदक भी; परन्तु दोनों के स्वरूप भिन्न हैं। एक ही पद्धति पर चलने के कारण दोन के एक कह देना उचित नहीं। यह कह सकते हैं कि दिवस की ही तरह भेदक भी व्यावृत्ति करता है और जैसे विशेषण प्रश्नै विशेश्य की तरह रहत-चलता है, उसी तरह भेदक अपने भेद्य की इरहू । कार्य-म्भ है, पति-साम्य है ! इस लिए भेदक को “विशेषण-कल्प' श्रीर ' ॐ विशेष्य-कल्प' कह लीजिए-समझाने के लिम् । नाम -भेद'

  • जरूर चाहिए। समझाया जा सकता है ---भेद्य' के अनुसार भेदक' रहता है; जैसे विशेष्य के अनुसार विशेण । कभी-कभी विशेष्य-विशेषण भी उम्बन्ध से कहे जाते हैं-भाषा का भाये किसे अच्छा लगेगा ?? यहाँ शिष्य-विशेषरए । क्रान्तिर से हैं। ‘मधुर भाषा किसे न श्री लगेगी ?' मतलब । विशेष ‘धुर' को जब भाववाचक संज्ञा बनायः ‘धुर्य', तब मुम्चन्छ से $थन ।

‘सिद्ध’ और ‘साध्य

कारक ( कुता, कर्म, कर, सम्प्रदान, अादान तथा अधिकरण) ‘सिद्ध होते हैं और किया साध्य होती हैं, 'विवेक' होती है । ‘राम मोहन को स्क देता है। हम पहले से ही विद्यमान है, 'मोहन' भी विद्यमान और पुस्तक भी सामने है। परन्तु ‘देवा’ क्रिया विद्यमान नहीं है। यह साध्य है । साध्य ही मुख्य होता है। विथैथ ही प्रधान होता है। भोजन रखा है” में भोजन' सिंद्ध हैं ---एक चीज का नाम है, जो सामने है । खाना रखा है' में इल’ भी *सिद्ध' हैं । परन्तु मुझे अभी खाना खाना है' में ५६ला ‘ाना' । कर्म ) सिद्ध है और दूसरा 'खाना' साध्य है, क्रिया है। यद् सब आगे यथास्थान लर्ट हो । कर्ता, सम्प्रदान, अपादान को कभी निर्देश’ ‘प्रदान' तथा 'अपकर्षण’ छ। गत भा--- निर्देशः, कर्म, करणं, प्रदानमुपकर्षणम् स्वार्थोऽधिकृदयं विभक्थुः प्रकीर्तिताः ।।