पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२१

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(१७१५ ई.) के नासपास किसी समय लिखा गया होगा जो हालैंड के वाइडन नगर में १८०० वि० (१७४३ ई०) में दावीद मिल वा मिल्लिउस नामक पंडित द्वारा प्रकाशित हुआ। केटेलेर के समान अन्य योरोपीय विद्वानों ने अपने देशवासियों को हिंदुस्तानी भाषा सीखने में सहायता पहुँचाने के उद्देश्य से संभवतः कुछ और व्याकरण भी बनाएँ होंगे, परंतु विदेशियों द्वारा लिखे जिन व्याकरणी का उल्लेख प्राप्त होता है उनमें डा० जान बोर्थविक गिलक्राइस्ट का 'हिंदुस्तानी ग्रामर (सं. १८४७०-१७६० ई०); रोएब का 'दि इंगलिश ऐंड हिंदुस्तानी डिक्शनरी विथ् र प्रामर प्रिफिक्स्ड' (सं० १८६७-१८१०ई०), जिसका व्याकरण भाग फोर्ट विलियम कालेज में पढ़ाया जाता था और टेलर के मतानुसार उस समय का सर्वोत्तम' व्याकरण था, येट्स कृतः 'हिंदस्तानी ग्राम (सं०१८८१-१८२४३०);प्लाटस कृत हिंदस्तानी प्रामर', पादरी श्रादम साहिब का हिंदी व्याकरण' जो हिंदी में लिखा गया था और डंकन फोरबस का लिखा 'ए ग्रामर श्राव दि हिंदुस्तानी लैंग्वेज', जो लंदन से सं० ( १६१२---१८५६ ई.) में छपा था और जिसकी एक प्रति नेशनल पुस्तकालय कलकत्ता में रखी है', विशेष उल्लेखनीय हैं। पंद्रह वर्ष बाद सं० १६२७ (१८७० ई.) में काशी के एक पादरी एयरिंगटन साहिब ने अँगरेजी में हिंदी का एक व्याकरण लिखा जो अगले वर्ष ९० १६.२८ में 'भाषा भास्कर' के नाम से हिंदी रूपांतरित होकर छपा । सं० १६३१ (१८७५) में केलाग साहब का 'ए प्रामर अाव हिंदी लैंग्वेज प्रकाशित हुआ जिसका द्वितीय संस्करण सं० १६४६ (१८६२ ई.) में छपा जिस में हिंदी के व्याकरण के साथ ही तथाकथित उच्च हिंदी, ब्रल और पूर्वी हिंदी का भी विवेचन किया गया था। विदेशियों द्वारा लिखित सभी व्याकरण-ग्रंथों में केलाग का व्याकरण सर्वोत्तम स्वीकार किया जाता है। विदेशियों के लिये भारतीय द्वारा लिखा एक व्याकरण लल्लूजी लाल कृत 'दि मेडिकल प्रिंसीपिल्स श्राव व्रजभाषा' या जो सं० १८६७ (१८१० ई० ) में लिखा गया था। हिंदी व्याकरण के निर्माण का यह पहला दौर था जिसमें विदेशी अथवा १. इस व्याकरण के पत्र इतने जीर्ण हो गए है कि नेशनल पुस्तकालय के पुस्तकालयाध्यक्ष ने प्रस्तुत लेखक को उसे देखने की अनुमति नहीं दी।