पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२१०

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---निर्देश, कर्म, अर, प्रदान, अपकपण, अधिकार, ये छह कारक और ‘स्वाम्यर्थ स्व-स्वामी श्रादि सम्बन्ध, थे त्रिभक्त्यर्थ हैं। विभक्ति से नो अर्थ निकलते हैं; इन्हीं के अर्थ । इन्हीं को प्रकट करने के लिए विभक्तियों की सृष्टि है । तद्धितीय प्रत्यय भी विभक्त्यर्थं प्रकट करते हैं। त” को निर्देश कुन ठीक ही हैं । 'राम' गोत्रिन्दरमा’ निर्देश मात्र हैं। इन उद्देश्यों के विधेय-पढ़ता है, सोता है', ‘गाती है। श्रादि दे। दिए जाएँ; तब पूरा शूध निकल रहा हैशर्स पढ़ता है अादि । ‘प्रदान ॐ सदान' कर दिया गया है ! कस-जिल से कई चीज चं झार; या श्रतः अलग हो । इस तरई हिन्दी की इन धिभक्तियों का शौर, २, ३ ( सन्छ । प्रत्यय की चर्चा हुई। इनका भी नाम : ईलाम में होता है । विवाद में एक विभक्ति ईन्द नहीं हात, पंजाबी लगती हैं-“भोटिव रोदियाँ । हिन्दी में ‘नोटीं दियाँ । किसी समय हिन्दी में भी ऐसा चलन था; प्रत्युः ‘पढ़तियाँ हैं लड़किय? जैसे प्रयोग भी उर्दू वालों ने किए हैं। शाचे चलते-चलने परिष्कार हुआ और ‘अ’ विभक्त केवल विध्य में होने लग-मोटी रोटियाँ } *पढ़ हैं लड़कियाँ । हे ही बहुत्व प्रकट हो था, तई ‘पढ़ती' का पढ़तिय किस काम की ? सम्बन्ध-प्रत्यय से कृढ़े-कम आदि का भी प्रतिपादन होता है। यदि इन कारकों पर वियर न ई । “फली का भोजन स्वास्थ्य-अद है यह

  • भोजन का काम हैं; यानी भैछ ‘भोजन और भेद* *ल' है-

छ भोजन' । यदि फलों पर कम-रूप से बिथता हो, तो सम्बन्ध-त्य ने लगेसा-‘में फल खाता हैं। मनुष्य का भेजन फल है” यहाँ कक्ष ( मनुष्य ) में सम्वन्ध-यय हैं। * ४ ‘भोजन'। कतई और कर्म का भेदक-भेद्य रूप से प्रयोग है। भोजन' कृदन्न संज्ञा है, जहाँ ‘भाव’ लौह हैं । इस लिए उद्देश्यरूप से स्थित है। नई जन* कर्ता हैं, “ई” क्रिया का ! इस उद्देश्यू । “भौजन' ) कर विडेय ( या विधेय-विशेषण ) फल है। अगले श्राद् में सूत्र और अष्ट हो जाइगर ।