पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२१३

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अनुदेव जायः सूनु' या--नन्द जाई कन्या जैसे प्रथेग न हो यो । यो हों :- यदे के पुत्र हु। नन्द ॐ झन् हुई बसुदेव के छोरो भयो नन्द के छोरी भई ‘भो’ और ‘भई’--- ----‘हुई। खड़ी बोली की 'हो' धातु भी श्त के हो ? ज झी 2' में ' भी उस डे है। 'भू' धानु { संत में ) उत्पन्न हुँने के अर्थ में भी चलती हैंमत्य कन्या अभ- तु’--‘राम के लड़की हुई'। हैं' धातु संत वार से हैं-झजभाषा में भी, 'ड्री वालों में 4 । कुरुलाई में हैं हैं । उही सै' कुरुजनपद में है चौंर जश्न में 'ॐ' । के, ३, ने भक्तियाँ हिन्द की सभी बोलियों में हैं-- भइ गजलि मोरे सुत नाही? अर्थदी में मोरे, अन्यत्र ‘मेरे । भोहिं सुत नाहीं या कहें सुत न' न हों गा; केकि अस्तित्व मात्र सुत का कुइना है । सुबन्ध- विभक्ति हैं। इन रडू ला; उथा राजस्थानी आदि मैं भी । हिन्दी की बोलियों में ‘बन्ध हिन्दी की बोलिय” इन संबन्ध-त्यों से त' संबन्ध-विभक्ति से ही अद्ध हैं। हिन्दी को स; बालियों में इन कः श्रस्तत्व है। के, २, ने *- रूप भि”ि क, र, न संबन्छ-त्व; कहीं 'श्री' पुंबिभक्ति के साथ, कई छो’ युविक के साथ और कहीं केवल-तुम्हारः, तुम्हारो, तुम्हार । —ा'--'था ..थारी' । चौध छ ही हैं। यही स्थिति 'न' देथा

  • $* की है । इ इन की स्थिति यथावतु नहीं है, वह हिन्दी की बली'