पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२१४

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शब्द का व्यवहार नहीं । ‘खड़ी दो की पटरी पंजाबी भाषा से इन्द्र छैठती हैं, ‘खड़ी पाई के कारण --‘ज्ञातः ई-‘दा है'। 'मंडा पानी मिट्टा पा । यह खड़ी पाई भाषा, अवधी, रञ्जरथानी आदि में नहीं हैं । परन्तु बड़ी बोली” हिन्दी-परिवार में ब्रजभाधा आदि के साथ है; पर बंजाळी ‘हिन्दी की बोली नहीं कहलाती । यह इस लिए किं वह क’ होइन्ध-प्रत्यय नहीं है, के लंबन्ध-त्रिभक्ति नहीं है। कई ‘’ हुँचन्छ-त्य है र ? संध-भक्ति हैं। छ’ में विभक्ति ( ‘ा’ } लग कर--- सहा मुंडः { में लेइक ) साई हो । भरे लड़के )। साड झी लड़की ) र ? विभकि- ‘भाई हि* कुड़ी होई, ते ३ मुंडे होए { मेरे एक लड़की हुई और तीन लड़के हुर) यों है की स्थिति उसी तरह हैं, जैसे हिन्दी में रे छी । संभव है, से ही डे' हो, या डे” से २’ हो । ’ और २ रस में रूप बदलते ही रहते हैं। परन्तु भैद तो हो गया न ! तत्र 'हिन्दी की बोल' कैसे कहीं जा १ यही नहीं, ‘क’ की जगह ‘द' है-युविभक्ति से दा, दे, दी । राम दा पुत्तर १ रास झा पुत्र ) राम दे पुत्तर ( राम के पुत्र ) र दी कुड़ी { रस की खट्टी ) संज-कि ३ है----- { म के ६ लड़की हुई ) | इस भूले ( प्रत्यय तथा बिभत्ति के स्वरूप-भेद के कारण पंजाबी हिन्दी की बोली नहीं । गुजराती में राजस्थानी को तरङ्ग श्रो' विभक है; परन्नु छ' सुबन्ध- इत्यय नहींन सर्वत्र चलता है । युविभक्ति खर कर लो और स्त्री-लिङ्ग