पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२१७

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( १७२ ) मान लीजिए, संस्कृत की विभक्तियाँ स्वतः उत्पन्न हैं और हिन्दी की है। आदि किन्हीं शब्दों के रूान्तर हैं; र इस से नाम-भेद कैसे ? कास प्रक, नाम एक । कहते हैं, ‘क’ आदि का प्रयोग प्रकृति से सदा कर नहीं होता; इस लिइ ये ‘परसर्ग हैं। क्या यह नहीं कह सकते कि हिन्दी में विभक्तियो ॐ योग प्रकृति से सटा कर नई, हट कर होते हैं ? साइब कहीं चम्मच से राता हैं, तो उठ के खाने का नाम ही बदल दिया जाएगा क्या ? या, वह का जएगा कि हम लोग हाथ से खाते हैं और दूसरे लो कटे-चम्मच से | बड़ी विचित्र बात है ! व्यर्थ की बातें हैं। ऐसी ही बेकार और उथली बातों से पोथे बना कर *पा-विज्ञान नाम रखा गया हैं ! हम यहाँ भाषा- विशन फी च न करे ! बहुत बड़ी राम-कहानी है ! परिशिष्ट में कुछ उतना ही कहा जाए गा, जितना व्याकरण के लिए जरूरी है। अब यह प्रकरण समाप्त करना चाहिए। श्रावश्यकता से अधिक तो नहीं कहा गया है; पर फिर भी काफी कह दिया गया !