पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२१८

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तृतीय अध्याय

नाम, सङ्नाम तथा विशेषण

छिमें अध्याय में जिन 'ने' आदि विभक्तियों का निदर्शन हुआ, बैं नाम या सर्वनाम में लगती हैं। 'एम' शबन्द' पर्वत, नदीअदि ‘नास हैं । विशेदनों के भो ‘नाम अनाज र ६-सुशीलता, कुन्दरता, कठोरता, चञ्चलता था गम्भीरतः ऋदि । म सुशील हैं। अह सुशील विशेष, जो ‘राम में अक्ली मुशीलता है। यहाँ अच्छी’ विशेष के साथ शृथकू एक *ज्ञा था ‘म’ के रूप में हैं। जी सत्र के नाम बन जाते हैं, उन्हें सर्वनाम कहते हैं-मैं-तू, यह, वह आदि शब्द सबस' हैं, कि इक इन में संकेतित ह । हाँ, यदि किसं विशे; व्यक्ति में किसी एस शब्ट्र को संकेति३ कर दें, तो उसे संकेत को समझदेदाले उन में वह 'नाम' झी हे ज्ञा' । किसी लड़के का नाम '३' रख दीजिय, तब मैं को बुला सहने से वृद्दी समझा जाएगा और तब मैं सर्वनास न रहे हैं परन्तु साधारणतः ये सब ‘सर्वनाम हैं । इस अध्याय में इन्हीं 'नाम' आदि शब्दों का अन्वाख्यान होगा। | भाषा में दो तरह के शब्द प्रमुख हैं--'नास’ और ‘ख्यत--संज्ञा और क्रियाएँ । दूसरे दर्जे पर हैं-उपसर्ग' और 'निदात’ ( या अव्यय } } मर्षि या ने इस लिए नामाख्याते दास निपक्षाश्च' कहा हैं। नाम तथा अळ्यात स्वतंत्र चलते हैं और उपसर्ग-निपान इन्हीं की जा में रहने हैं। विशेदता चीज में इं रहती हैं; इसो लिए हिन्दी विशेषण में पृथक् काई विभक्ति नहीं लगाती ।। 'नाम' की हिन्दी-व्याकरणों में संज्ञा' नाम दिया गया है। परन्तु नाम-भूवैज्ञाभ' सीधे हैं। पाणिनि-पद्धति में भी 'ना' चलता है । हास धातु का वर्णन हिन्दी व्याकरणों में भी आता हैं । 'नाम' क; ज्ञा' इने पर सर्वनाम’ को ‘सर्वसंशा तथा नामधातु' को संज्ञाधानु’ »हना ठीक छोरा । परन्तु इम इस झुम्क में क्यों पड़े १ नईम में क्या रखा है ? म ले मतलब | ‘संज्ञा' ही कहते चलिए ।