पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२२०

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व्याकरण में ‘इन्' शब्द का अन; विशेष अर्थ है ! जिन शुब्द में संज्ञा-त्रिभक्तियाँ लगती हैं, उन्हें द्रव्य’ काइते ई–लिङ्गसंख्यःन्त्रितं द्रव्यम् । संख्या विभक्षियों से प्रकट होती है। क्रिया में स्वतः लिङ्ग-संख्या आदि हैं ही नई ।। इसी लिए क्रि-शब्द भाजप्रधान' कहलाते हैं। 'दुव्य’ को इ

  • निरुक्त’ में स्वत्व' कहा गया है । ‘करना ग्राना’ ‘बाना' आदि में ‘भवृ’

निर्विरोध है । पचतिं? या ‘पकाता है कड़ने में ‘भाव' धात्वर्थ ) बिशेष रूप से है । इजी लिइ कहा राया है:-- ‘ भाषानभाल्दातम् जिन शब्दों में भा” की प्रधानता हो, उन्हें अख्य आते हैं और जिन शब्दों में इज’ ः श्रनता हैं, उन्हें नम्' कहते हैं:--- ‘सरदधानानि नामानि ‘सत्त्व समझिए---सत्ता' । पाचक ऋता हैं में धान्दक' शब्द सत्य- प्रधान है । यद्यपि “क्रिया’ का अंशः बा भाव’ इस शब्द में है। परन्तु उस को प्रधानता नहीं है। एकादा है' या गा’ था ‘काना' जैसी कोई चीज प्रतीत न होती, असे कहा जाता हैं---:च आता है यह चिफ है' अादि । जो व्यक्ति एकाहे का काम करता है, उसे “पाधक' कहते हैं। इस रूप में अस्तित्व रखने वाले का वई नाम भर है । कहा है-“दनिहित- भाव द्रव्यवद् भवति-दन्त से कहा गया ‘भाव द्रव्य की तरह प्रयुक्त होता है; उस में लिङ्ग-भेद' हो है; संज्ञा-विभक्षिय रही हैं। इस लिए आना; जादा' आदि को ‘भावाचक संज्ञा फतें हैं । परन्तु धातुओं से बने सभी शब्द संज्ञा-ब्दों में नई श्री ते । सुत्द- प्रधान शब्द तो 'नाम' हैं ; किन्तु यहाँ 'भाव' प्रधान है, उन्हें संश-शब्द नई कह सुते । ऐसे शब्दों में ३' ने अादि विभक्षिय भी न लगी; धुंली-सैद ले रूद जरूर होगा और वचन-भेद भी- ३-- रम गया-सुतः गई। २---लइ गम्-लड़झिं गई