पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२२१

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३-लड़के ने पाठ पढ़ा और पुस्तक पढ़ी ।। ४–राम को वेद पढ़ना चाहिए और कला सीखनी चाहिए । सर्वत्र संज्ञा की तरह क्रिया-शब्दों में लिंग-भेद तथा वचन-भेद है; परन्तु ये 'भाधान' हैं, आख्यात है। इस लिए इन्हें संज्ञा नहीं कह सकते; ये नाम नहीं हैं। काम करने से रोटी मिलेगी' में करना भाव-प्रधान नहीं. सत्त्व-प्रधान हैं। इसी लि भावाचक संज्ञा है। श्रख्यात' में से को आदि दिनकियाँ नहीं लग सकतीं ! कारण श्राख्यात' में भव' यानी क्रिया प्रधान हैं, विध्य रूप से है। हिंदी में प्रख्यात' या क्रिया-शब्द कृदन्त ही श्रधिक हैं, जिनमें लिड:- भेद तथा वन्दन-भेद संज्ञा की ही तरह होते हैं । तिङन्त श्रख्यात बहुत कम हैं हिंदी में | इस भ्रम में न रहना चाहिए कि तिङन्त ही ख्यात' होते हैं, कृदन्त नहीं । ‘शवप्रधानमख्यातम् । जहाँ भाव ( धार्थ ) प्रधान हो. वर्ध। श्रख्यात । धात्वर्थ का आख्यान इन शब्दों से होता है। इन श्राख्या-शब्दों में ‘ने’ को श्रादि का चैसा प्रयो; न होता- ‘रामः झाश गनः

  • *: संस्कृत में संज्ञा विभक्ति ल भी सकता है-

‘काश गरेन । तत् कृतम् । का पहुँच हुए राम ने वह किया । परंतु हिंदी में कभी भी ‘काशी गए ने राम ने न हो । हिन्दी में कृदन्त क्रिएँ अधिक हैं और उन झा प्रख्या- तत्व प्रकट करने के लिए ही कदाचित् विशेषणों में विभक्षियाँ लगाना अभीष्ट नहीं । ‘गये से, ये ' जैसे प्रयोग न होंगे-जाने से, छाने से चलते हैं ।

  • राम के आये विवा काम न चले गलत लिखा जाता है--अाए बिना

चाहिए। यई ‘ए’ भूतकाल के अरठ्यात' का रूप नहीं है। एक स्वतंत्र 4g मोबाइक कृदन्त प्रत्यय है----पढ़े बिन' । दीर्घवरान्त घातुओं के

  • *g को हो रहा है..जाए बिना’ ! यदि भूतकाल के प्रख्यात

का वह रूप होता, चौ वर्तमान तथा भविष्युत् से कैसे अन्वित होता -