पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२२४

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३ सब पुलिङ्ग, पुंवत्र, या पुरुषजातीय; और 'रमा' जैसा गठन जिनका हुन्ना, ३ लता द्राक्षा' आदि शब्द स्त्रीलिङ्ग, स्त्रीय, या स्त्रीजातीय । इसी तरह भरवि की लरद्द ‘इवः पवि: आदि पुझि और 'अरुन्धत जैसे नदी अादि स्त्रीलिङ्ग कुछ शब्द ऐसे भी गड़े ए, जिनकी श्रीकृति र राति उन उभयविध शब्दों से भिन्न निक–अलमू-वनम्,जलानि-बनानि बारि-बारशिंगू आदि। इन्हें कहाँ रखें ? न रामः' जैसे, ६ रमा' जैसे ! दोनों वर्षों से भिन्न ! इन की दोसरी श्रेणी बना दी गई-पुसक किङ' । । य प्रारम्भ में, मूल भाषा में, शब्द की तीन श्रेणियाँ बना दी गई, जो संस्कृत में आज भी उपलब्ध हैं । हिन्दी नै ‘पर्वः' के विसर्ग उड़ा दिए, ‘पर्वत' ना लिया और लम् का ‘म् इद र ‘अला' मात्र ग्रहण किया। इन ‘पर्छ' झी ही तरह ‘न नी; शम' जैसा बन गया । त' तथा 'ब' दोनों पुल्लिङ्गे । इसी तर कविः' का विसई इटा कर कवि मात्र अदाँ लिया गया, तब ‘क’ ‘पनि तथा “वारि' एक जैसे हो गए---पुडिङ । म की तरह 'लता' आदि हैं ही । सो, सभी शब्दों को हिन्दी ने द ई भागों में ग्रह किया है---१--- पुरुषवर्गीथ २-स्त्रीवय । था, दुरुषजातीय' और 'स्त्रीजातंय कांहए । पुल्लिङ्ग' और 'स्नः लिङ्ग' हैं अच्छे लगते हैं, तो आप की मर्जी मलद्र इतने से कि बनावट के अनुसार हिन्दी के संज्ञा-शब्दै दो भा में विभक्त हैं । संस्कृत का अनुसरण हैं, एक विवेक के साथ ।

पुवर्गीय शब्द

हिन्दी ने अपनी जो ‘पुंविभक्ति श्रा' बनाई है, वह जहाँ हो, वहाँ तो पुंवगौयता या पुलिङ्ग तो निश्चित ही है- १-कुंडा, पंडा, डैडा, झंडा, लहँगा आदि ३-करना, पढ़ना, गाना, बयाना, नाचन आदि ३--मीठा, सीठा, कड़वा, कषैला, विषैला, मला आदि संज्ञाओं के अनुसार कृदन्त क्रियाएँ-