पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२२५

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{ १८० ) गया, श्रा, खाया पिया, उठा, बैंठा आदि । संस्कृत के पुल्लिङ्ग सभी शब्द यहाँ भी प्रायः पुंलिङ्ग ही हैं- पर्वत, वृक्ष, वेद, ग्रन्थ, बिझार, प्रकार, संसार, विचार, भेद, विभेद, मृग, शावक, सिंह शादि। भेद इतना है कि विसर्ग हटा दिए गए हैं। संस्कृत में वृक्षः पर्वतः अादि रूप होते हैं, यह वृक्ष’ ‘पर्चत अादि । संस्कृत तद्रूर ( तत्सम ) शब्द हिन्दी के प्रश्नमा' के एकवचन में बने हुए ले लिए हैं-प्तिा ( पितृ ),सात ( ‘माड़' विद्वान् ( ‘विद्वत् रजा ६ ‘राजन् । आत्मा ( अात्मन् । आदि । रन्जु प्रकारान्त शब्द के अह्वा में यह विशेषु बात है कि विसर्ग इटः दिए यह हैं । इक्षः’ को ‘वृक्ष' मात्र हिन्दी ने लिया है। यद्यपि प्रायः श्री मनःस्थिनि' आदि तद्ध संस्कृत शब्द हिन्दी में सविसर्ग ही चलते हैं; रन्तु पुंध-सूचक विज्ञ ग्रह नहीं लिए गए हैं। हिन्दी एक स्वतन्त्र भाषा है और भाषा-स्वातन्त्र्य के लिए विभूति स्वातन्त्र अपेक्षित है। इसी दम् हिन्दी ने त्रिभुस्ति-रूप विस हुट र ‘वृक्ष' जैसे रूप ही अपनायें हैं। प्रायः सभा ‘मनःस्थिति' छादिं में विसर्ग विभन्निश-रूप नहीं हैं, ‘प्रकृति के अङ्ग हैं । बहुत साफ थेः समझिए कि हिन्दी में शब्दान्त विसर्ग तथा व्यञ्जन इदा कर संस्कृत शब्दों को अना 'प्रापिदिक बनाया है। राम के विसर्ग हुवा देश और 'जम्’ ‘भू' हटा दिया । | अ किं संस्कृत के पुंस्ने-विसर्ग हिन्द ने हटा दिए, तम नपुंस- झल्- ‘म्' मैं हूढा दिया' ! 'वृक्षः' संस्कृत में पुंवर्गीय शब्द है,(‘बालकः

  • शी का है ) और कम्? नपुंशक वर्ग फा हैं। परन्तु हिन्दी में न

उर्ग, न म्' । “वृक्ष' झा 'कृ' के रूप में अहा है और फलम्' फा ‘कु’ रूप में ! जैसे अन्न बर्गथे, उस तरह ‘फल' भी । नृषु सुक- व्यंबक भूट पया, तब वृक्ष अौर ‘फल एक जैसे । इस लिए संस्कृत के श्रद्धान्त नपुंसक-लिॐ शब्द हिन्द में पुलिङ्ग बन जाते हैं । अरू' ' 'वन' 'पुष्’ ‘दु ऋदि । संस्कृत के नपुंसक-लिङ्ग ) शब्द युद्द ‘चुछ अादि के सुइ मुंवर्ग में गृही हैं। यह ध्यान रखने की बात है ॐि “लिङ' चिह ॐ कह हैं। विगं “वृद्धः आदि में पुरुष-लिङ्ग अौर भू क्ल’ दि में नपुंसक-लिङ्ग ! कहीं कोई ‘पुस्तक' जैसी शब्द