पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२२६

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{ १८१ } अदद में मिले हैं । यह शब्द हिन्दी में स्त्रीवर्ग में चलता है। संस्कृत में एक ताक्षर द छाया था, लम्' जैसे शब्दों के लिए । परन्तु इन्दी ने यह ( नपुंसकों का ) ३ उड़ा दिया । ६ फल वन अदि प्रायः सभी वैसे शब्द मुंवर्ग में अर टू । कहीं कोई पुस्तक' जैसा शब्द दौड़ और

  • कि के साथ जाने डबे में जा बैंटा ! वह इस नायः : ‘दुस्तक प्रकछी

हैं और ग्रन्थ अच्छा हैं । चुना' को बनाये डिब्बे से खींच कर भदोने में हो, तो इ ई Bा । *भुस्तक अच्छा है। कुछ बैंच नई । दुरुतक झब्द ' किताब के साथ स्वर में जल पङ्का है । संस्कृत

  • *पुस्तक' राल के कई = = = है। बहुत है, हैरान ।

बोल नंब श्राव-भाषा के किसी रूप में यह 5 चलता है। और उदै लै कुछ वरन । क स संस्कृत में झ ५ः र इस लिए किये मिलने पर न्दिी में उस र फिर शुरू या हैं । हिन्दी के उन में विश्व को स्थान नहीं हैं। जब कि ः• के बिर्ग ६ कर और फलम् ॐ ‘६ हटा कर यहाँ “वृद्ध’ ? ‘फ़ल” के रूप में ग्राहश हुई, तब मुझे झि----‘३ः ‘ोइः आदि के * विर इटा कर तेज छोड' शादि शब्द-रूम स्वीकृत हुए और इन्हें भी पुंबई में रा गा । जैसे—वृक्ष और फल, उसी तरह ‘तेज’ र ‘ोज-वुअर ३ ।। सब एक-रूप हैं। ‘अचर तेज हैं, अ श्रेज हैं' ! 'शिरः' के ' के स’ कर दिया यश-लिर' । ‘बड़ा सिर ३ । नुर' आदि ( संस्कृत के नपुंसक- लिङ्ग शब्द ) , तद्भव रूस ‘सु आदि भी मुंबई में हैं। ह' की तरह 'घर' भी वर्ग में ! ध्ययनम्, पइल., नु, श्वादि के ? को हटा र अध्ययन, पदन, पाडन अदि सुत्र यह पुंवर्ग में हैं । । नऊ:रान्त नपुंसक ‘कृ’, अर्मन्’, झन् अदि के रू संस्कृत में मा' के झ वन में--कन, चर्म, सन्न होते हैं, जिन्हें हटू हिन्द ने ग्रह; कर लिया हैं--पुंव में सम्मिलित कर के ! जैसे वृक्ष’ और ‘पल ॐ श्राकार वैसे ही , छ, सझ के भी हैं; सब वर्ग में दाखिल । संस्कृत की तद्धित भाववाचक नपुंसकलिङ्ग संज्ञाएँ-भहत्वम् ‘पाण्डित्यम् अादि नपुंसकत्र ( ५ । इट्टा र हिन्दी नै ‘मइव पारिइ नैं। ६