पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२२७

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( १८२ कर लिए। ये सब भी पुंवर्गीय हैं । जैसा रूप ‘वृक्ष' तथा 'फल' का है, वैसा ही मइत्य’ और ‘पाण्डिल्य’ का भी--अक्रान्ति ! सो, संस्कृत के ( तद्रूप ) अक्कारान्त प्रायः सभी शब्द यहाँ पुंवर्गीय हैं ।। संस्कृत के 'अस्-अन्त' तथा 'अन्-अन्त' पुंवर्गीय शब्द हिन्दी में भी पुंवर्ग में ही चलते हैं । असन्तु ‘चन्द्रमस्’ ‘वेधस्’ आदि के रूप संस्कृत में प्रथमा-एकचन में चन्द्रमाः' -वेघा' जैसे बनते हैं । इन के विसर्ग हट्टा कर चन्द्रभा' तथा देघा' जैसे निर्विसर्य रूप हिन्दी ने लिर, जो पु वर्ग में ही चलते हैं। राज, परमात्मन् श्रादि शब्दों के रूप प्रथमा-एकवचन में राजा

  • भारम' जैसे संस्कृत में बनते-चलते हैं। हिन्दी ने इन्हें इसी रूप में ग्रहण

कर लिया र ये यहाँ भी हु वर्ग में ही चलते हैं। केवल ‘आत्मा' जैसा कई शब्द अपवाद में मिल जाएगा ? न जाने क्यों, ‘श्रात्मा' हिन्दी में -रूप में चलता है---‘मारी आत्मा ने स्वीकार न किया ! 'मेरा श्रीमा अच्# नहीं लगता; बच्चभि ‘परमारमा ‘यु वर्ग में ही है ! इसी तरह ‘देह हिन्दी में स्त्रीज में चलता है; यद्यपि शरीर श्रादि पु वर्ग में । परन्तु भुक’ ‘देह हुथः ‘ग्राम' जैसे अपवाद अँगुलियों पर ही गिने जा सकते हैं । व्यापकता पु’व झी ही है। यह ध्यान देने की बात है कि जनता में 'दे' शब्द ही अधिक प्रचलित है, शरीर अदि बहुत कम } *आत्मा' और रमारम” ये दोनों ही शब्द जन् प्रचलित हैं, परन्तु एक स्त्री-वर्ग में, दुसरा युग में ! क्या कारण है ? कुछ हो गा ! शब्दों की अपनी गति हती हैं। सत्र हैं, अधीनता और स्वतंत्रता के कारण स्त्री-पुरुष्य का वर्ग- भेद जनद्रा में हर दिया हो । परमात्मा के अधन आत्मा और आत्मा के अश्वन ३ । सो ‘परमात्मा दई में रह र उसके अधीन आत्म स्वर्ग में ! ३’ भी स्त्रीवर्ग में इसी लिए कि अात्मा' से संचालित है। शर' भी लीरूद में चलता है । केश, बाल दि हिन्दी में पु वर्गीय हैं; परन्तु में ऊ' स्त्रीवर्ग में है; धादिं पुरुष-चिङ्ग है } पर नहीं, यह क्या ! ऐसा जान पड़ता है कि 'शक्ति' गि शुब्द हैं, जि के सायं तकृत' भी है । 'शक्ति' शब्द' स्वर्ग में । ॐ आइए इं? दाछि शुक-पुञ्ज यो शक्ति-व्यंज* अन्य शब्द भी लीवई में चल अड़े ई ! तलवार, ताप, बन्दूक, सरकार, फौज, पुलिस, संसद, अदा- है, अादि ऋत्वि-ॐ श्री में हैं। हैं ! सम्भव है, इसी लिए मर्दानगी का त्रि में भी श्री-गं में चला गया हौं ।