पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२२८

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( १८३ ) सो, ये अपवाद बहुत कम हैं । अणईल्ड स्त्रीवर्गीय शब्द संस्कृत अकारान्ट स्त्रीलिङ्ग शब्दों के तुङ्क रूट दिन्दी में प्रायः अक:- रान्त हो जाते हैं--- | खट्वा > स्वाद, द्राक्ष> दाख, शिक्ष> सीख, भिक्षा-> ईख,जिल्ला> जीभ, लादला; आदि । संस्कृत ( अट्टप) फानान्त स्वर्गीय शब्दः गन्ना, द्राक्षा, शिक्षा, भिल्ला, हा आदि दिर्द में भी स्त्री ही हैं और इन के नद्भ प रवा, दाख, सति, क्षेत्र अछि । बिर ६ । कला' जैसे शब्द तर ही चलते हैं। तुः दि शब्द और हद समासिक उद्र ल में ड्री चलते हैं :--'अश्वाला देवी शाला देव । “शाला ॐ सा संस्कृत तद् प शब्द का ही समाप्त होता है। लक्ष उद्धव अब्दों का रूस करना होता है, तन्न ‘ला' ? साल झव रू; गृहीत होता है----ध्रुड़साल' टसाल’ ‘टकमाल ३ । ३ ‘घुड़साल' अदि भी इद्धति पर चलते हैं । जम् लिङ्ग शब्द है, जिस का तद्भव -जामुन' हैं । “जमुन' ने भी स्त्रीत्व नहीं छोड़ा--'जानें अाली अच्छी होती हैं । झा का विकासक्रम हैं, जो गुम पर जता हैं। इसी तरह कुटज, अमरूद, तरबूज आदि पुंदाँय हैं । सन्ता, खरबूज: झाद में से हिन्दी की पु विभक्ति की छात्र स्पष्ट ही है। फार, द, दाद, दट, भीड़, रेल-ज्ञ श्रादि शब्द लोसार पर। स्वाइ श्रादि की तुई चलते हैं । ‘तार आर्ग प्रर च है; ल’ मार्ग पर । “र” के न्दं न ।' का विदाई भान ३ ३ ३ बीईई- ” * * ; ई तरह २ १ लाई पटरी } पर चलने । जाड़ा रेल गाड़' ! फिर बिछ ॐ दिन केवल २' का प्रय हुई लहर -२ डा रही हैं । - - ब्र् कः भ र ड्रा रह ! इसी लिए रेल' लिङ ब चा कर इस को टिकट की । ।' वयि शब्द अलग हैं- 'ला' जर का प्रवाह ! १’ भी ऐसा ही है । ‘मेल * पुंच है । अर्थ-भेद छे रू-भेद । तर धुवीय हैं, पर ‘ा विधक नहीं है; क्योंझि क तारः शब्द हिन्दा ने।