पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२२९

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( १८४ ) मुंवर्ग में ले लिया है। हारे-नक्षत्र । 'एच' पुर्जा’ रुक्का' आदि। शब्द पुल्लिङ्ग हैं; हिन्दी की पुविभक्ति का प्रभाव । परन्तु “चिट स्त्रीलिङ्ग है। इसी तरह ‘टिकट' भी । यह ध्यान देने की बात है कि पेशावर से ले कर सीधे श्रासनसोल तक हजारों मील की यात्रा करने पर भी आप को ल' तथा टिकट' स्त्रीलिङ्ग में ही इनसे मिलेंगे। पंजाबी कहते हैं--‘टिकट खरीद ली । हम कहते हैं--टिकट खरीद ली। पूरब में टिकट' के <fकटिया' और ' ' -रेलिया' कहते हैं । वहाँ ‘इय' प्रत्यय स्वार्थिक स्त्रीलिङ्क में चला है ।। | एक बार राजर्षि टंडन ने यह उद्योग किया था कि हिन्दी में सरलता ने के लिए प्रायः सभी अकारान्त शब्द पुलिङ्ग सनि लिए जाएँ। उन्हों ने झाइमले राजेन्द्र 33 के मुहँ से लुना है---‘रेल बह गया । जब सम्मे- लन’ के भूतपूर्व सभापति देल बह गया' बोलते हैं, तो उसे भाषा की स्वाभा- थिक राति मान लेना चाहिए। परन्तु धिन्दी ने राजर्षि झा व प्रस्ताव अभी तक खीकार नह किए हैं। • जन-प्रवाई कारगर है। रेल व या' मुहँ से निकल गया ! ऐसा हो ही रहा है। परन्तु बिहारी लो अपनी भाषा में

  • ऐल” का लिया स्त्रीलिङ्ग प्रयोग करते ही रहेंगे-पुलिङ्ग ‘रेलवा' न

करेंगे। वे ‘अ’ को पुल्लिङ्क अमदा’ बोलते हैं; पर जामुन’ को ‘जमुनियों कहते हैं । “जामुन' को “जनुनवा’ ३ कभी भी न बोलेंगे ! राजस्थानी लोग ‘म’ को पुल्लिङ्ग में ग्राम हो यो छै' बोलते हैं और जामुन' को जिङ्गा ’ ! इसी तरह पंजाबी भी व्यवहार करते हैं। तो, छह- छई, बड़े-बड़े प्रदेश में प्रचलित शब्द-व्यवर के विरुद्ध कोई राष्ट्रभाषा का यम कैसे बना दिया जाए । उसे सारे रा कौन १ हाँ, यदि कोई सब्ज ८म’ ‘मुन' के लिङ्ग-भेद से परिचित न हों, तो मजे से संस्कृत ‘ान्न तथा ‘कडू का प्रेम कर सकदे हैं। इन दल छाए गु । या फिर वे

  • जामुन' का भी पुहिङ्क ये करें, इस सच समझ लेंगे। यदि चलन वैसा

हाँ धके हो था, तो निम बन बिना ही काम इन खाद गर । अन्यथा, नियम बना-बनाथा पड़ा रहे गा, या पनी चाल पर जाएगी । 'कमल' शब्द कुछ लोगों ने ईस्कृत में पुलिङ्ग भी चलाना चाहा और वैसा कोश- अन् में दिख भी दिया। परन्तु संस्कृत के प्राड ने बह' स्वीकार न किया र उच्च ( झल' को नपुंझ लिङ्ग में ही प्र चालू रहा। यदि कोई जविचति प्रदः झा लिख दे, तो गलत समझा जाए गा । जब