पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२३०

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संस्कृत-प्रवाह की यह स्थिति है, तो हिन्दी के जामुन तथः शेल' अदि का पुस्त्व-विधान नियमतः न करे ? कौन उसे सानै} } बीस-बीस करोड़ जनता के प्रवाह के नियम बना कर कैसे कोई भइ ? यदि नियस बना भी दिया जा और सरकारी छा से इन सब उले भान भी लें, या राजर्षि की इ समझ कर वैना मान लें, तो फिर इतनी विस्तृत जन-भाई से राष्ट्रघा की पद्धति अजभई पड़ साह, बी 1 अंशः ॐ कृत्रिम भाषा बनाने का उ:क्रम ही है | फिर द्राक्ष, इट! ऋ के तद्भत्र रूप “दाख‘खाट' आदि भी उ तरह से है ? इड़ी गईडी चे ही ! हिन्द ने अपनी पुंकि र’ (१) अन् । र 'लझा' हा 'हुंडा कंत्रा' श्रादि ऊ ग रूम कि ! ऐसे शब्द को लिङ्ग में लाने के लिए अन्य ‘अ’ ** कर देते हैं-लड़क?' ' '  ; संस्कृत-पद्धति झा भ्रानुरूर है । :न्दी में विभनि, ब} ली र इसे

  • य’ : तद्द शव्द ३ लत हैं, तब जि काल भट्ट

शब्दों के लिए लिने व्यवस्था ऊरन ई । 'इ' ला आदि के अन्त्य दीर्घ श्यर को हेल्च कर दिया गय[...“दा, 3' ! सं३ में ।' यः स्त्रीलिङ्ग का चिह्न हैं---‘लता ज्ञा दि : न्दिा ३ ' को दुल्लिङ्- विभक्ति बना लि–अंडा? ला’ ‘अ’ खुट्टा श्रादे। तब वहाँ अझ- रान्त ( संकृत ) तद्भव शब्दों का हुस्न करना पड़ा ! 'द लाइ आदि तद्भव स्त्रीलिङ्ग शब्द हिन्दी में हैं ! यदि सभी अकारान्नु हिन्दी शब्द पुल्लिङ्ग मान लिए ज्दा, तो फिर चिचन हिन्दी * । वह निर्ग- वैज्ञानिक पद्धति बिगड़ जाए ग ! क्या यह ठीक होगा ? । हिन्दी में रेल, भीड़, जामुन, दखि अादि काल ससशः शब्द हैं; परन्तु संस्कृत में ऐसा नहीं है। वहाँ आकारान्त ता इक्षा’ अदि स्त्रीलिंङ्ग हैं । हिन्द? ॐ भी उन सब का स्त्रीलिङ्ग में ही प्रग हैं है । कहीं कुछ हेर-फेर भी हैं। उदाहइश के लिए तर?' शब्द ले सकते हैं । संस्कृत में यह स्त्रीलिङ्ग शब्द है । हिन्दी में क्षेत्र के वाय-रूप से इस का पुलिङ्ग योग होता है-तारे निकले २’ और भाषा में एते तुम तारे जेते नभ में न तारे हैं।' जेते खारे---तिले सारे पुलङ्ग । परन्तु जद किसी लड़की का नाम 'तर' ल देते हैं, तो लिङ्ग प्रयोग होता है:-नारा वर चली गई । ‘नक्षत्र के लिए सारा पुल्लिङ्ग हैं ।। हिन्दी पु० तार' । संस्कृत स्त्री० लारा' से } एक पृथक् शब्द हैं । ‘तारङ्ग से ‘क’ अलग करके ‘तार' में अपनी सुविभक्ति-र? ।