पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२३१

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‘दारा हिन्दी का सूत्रीलिङ्ग शब्द है । संस्कृत पुल्लिङ्ग ‘दार' में संस्कृत कई ही स्त्री-यई ‘अ’ लाझर ‘दारा ।। सारांश यह कि शब्द का चलन-सा स्वतः बनता है, बनाया नहीं जाता । “संस्' तथा प्राकृत' शब्द भाषा-विशेषों के लिए संस्कृत में नपुंसक- लिङ्ग चलते हैं --स्त्रीलिङ्ग नहीं । ‘सुकृतेऽद्यताम् प्रश्नपत्रों में लिखा रहता है-इंस्ता नहीं । इसी तरह ‘प्राकृतं घडिवधं स्मृतम्' । परन्तु हिन्दी । ये दोनों शब्द स्त्रोनिड्स में चलते हैं-मैंने संस्कृत भी पढ़ी हैं, प्राकृत भी पढ़ी है!' यई सरा-भेद । संस्कृत ‘प्राकृत' शब्द हिन्दी ने रेल-दाख आदि की तरह अकारान्त स्त्रीलिङ्ग मान लिए; यद्यपि ( संस्कृत के } ज्ञान ‘वन जल’ ‘दुग्ध’ अदि नपुंशक लिङ्ग शब्दों को पुलिङ्ग माना गया है । रघु कुरा ? कारण है ! 'संक' या प्राकृ' शब्द विशेअशा हैं, विशेष्यनिग्न हैं। कहा ना संस्कृतं मू । इसी तरह प्राकृत भई । 'संस्कृत भाषा समस्त हो कर संस्कृत-भाषा’ ! ‘त्कृतभाया' संस्कृत में। और हिन्दी में साधारणतः । संत भ! बड़ी मधुर हैं ! स्कृत' तथा ‘मधुर विशेष हैं, के अर्वाचीन काल में स्वात भाषा में ऐसे हिन्दी-प्रयोग देखे बा और फिर भार’ के बिना भी ‘संस्कृत में सन्धि-नियम जटिल है ऐसे केवल्द सुल्झल' के प्रयोग । संस्कृत भाप के लिए ) होने लगे। इसी संस्कृत के देख कर लोग नपुंसक-लिङ्ग संस्कृतम्' 'संस्कृते' अदि योग करने लगे। यही स्थिति इन ई है । परन्तु हिन्दी में इन के स्त्रीलिङ्ग में ही प्रयोग होते हैं ल ाड़ी आती हैं अौर ‘रेल आती है। इसी तरह संस्कृत भाषा मैंने ढ़ी है' और 'संस्कृत मैंने पढ़ी है'; ‘ऐसे प्राकृतों में नहीं, ऐसी प्राकृत ' यी हिन्दी की पद्धति अधिक नियमद्ध हैं। संस्कृत पढ़ा है। यहाँ न हो। गा । आँन्दी में नीलमणि' लिङ्ग है और नीलम' पुल्लिङ्ग है ।। नील नी ’ से इं बना है। कभी-कभी विशेषण का ही प्रयोग विशिष्ट अर्थ में कर देते हैं। लखनऊ के खरबू के लिए ‘लखनऊ। उड 7 वा ३ --लखनऊ ए यह भाव है १ बोलते हैं । संस्झत में हेली १६ नसक चल पड़ता है । संस्कृतभाषा -' संम् । इसी तरह गलम” * *नलम्' र सुस्वर कर के 'नुलम'। नीलम, एक रत्न । यह खो स्पष्ट ही हो चुछा कि हिन्दी के प्रत्यन्त लड़क' आदि शब्द् हीलिङ्ग * ईकारान्छ । अते हैं। संस्कृत के जैदी, सरस्वती, त्रिवेयी शादि