पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२३६

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प्रकरण में आएँगी । कृदन्त-प्रकार में भी कितने हैं। स्त्रीत्व में प्रत्यय श्रा रो । ‘लिखाई’ ‘पिटाई श्रादि कृदन्त-संज्ञा स्त्रीलिङ्ग हैं। दुविभक्ति-युक्त घंटा' आदि से लचुदा प्रकट कृरने के लिए 'ई' प्रत्यय होता है----ट' । 'दिव्दा-हिंबई' आदि । इ' भी होता है--डिब्बा- डिबिया । ये सब तद्धित-झर में स्पष्ट होंगे } नैंस' ले पुल्लिङ्ग मैं बना और 'बकरा ८°० से चरी स्त्रीलिङ्ग । 'इ' से 'बर नहीं हैं। उस ग्राही को ‘बकरा' इस लिए कहते हैं कि वह ‘६३ ब किया हीं करता है !

    • में करने से 'भेड़ । इसका पुलिङ्ग भेट्टा' श्ररि लिपि-श्रम से मेढ़ा' ।

‘बनिया' में पविभर्कि नहीं है। इस लिए 'ई' न हो। स्त्रीत्व में । वनडे खरे सो ‘ब्रनिंबा' । इसी तरह 'जड़िया' दुनियः श्रादि । यह 'इ' प्रत्यय तत्- कृरिता में हैं । | जिन शब्दों में पुत्रिभक्ति नहीं, उन से 'इ'नहीं, अन्यान्य स्त्री-प्रत्यय होने है-सुनार-सुनारिन, बनिया-बनैनी आदि । परन्तु तीन वर या शन्दों से 'ई' प्रत्यय होता है, विभक्ति न होने पर भैं, यदि व मनुष्येतर प्रा62 के वाचक होंः---हिरन-हिर, भेद-मेढ़ी श्रादि । इन्दर' से 'बन्द' पंजी में बनता है, हिन्दी में 'चॅदरिया बनता है। इकराने से करी’ र ‘म- रिया' दोन । बुडुवा' से 'बुब्बु ई-प्रत्ययान्त; परन्तु पुर के ( ‘बूड़ मई, वाले “बूढ' से 'इया' प्रत्यय होता हैं---‘बुड़िया' । बढ़िया' अलग चीज है—कृदन्त विशेदपु––बढ़िया कंट, बढ़ेया घोती । संस्कृत के ‘इन्द्रा श्रादि की तरह ‘डित* * *द्धि तानी' आदि‘आनी'-प्रत्यन्त शब्दों की प्रचुरता है। श्राइन' भी ‘पंडिताइन’ ‘बाइन' | ‘इन’ भी सोनारिन । कृदन्त ( कर्तृवाच्य तथा कर्मवाच्य } पुलिङ्ग क्रिया के स्त्रीलिङ्ग बनाने में 'ई' प्रत्यय अनिवार्यतः लगता है- आय-~-झाई ( अरबी ) सोया---सोई ( सोयी } खाया----खाई । खायी ) । धोया-धोई ( घोयीं } आदि । क्रियाएँ भाषा की जान हैं । यह अपन’ सब कुछ रहेगा । अपना पु प्रत्यय और अपना ही स्लीप्रत्यय-न परस्य किञ्चित् ।। भाववाच्य क्रियाएँ सदा ही पुल्लिङ्ग एकवचन रहती हैं। वहाँ स्त्रीप्रत्यय की कोई चर्चा है? नहीं-राम को उठना है, सीता को उठा है, लड़कों को सि ।