वह 'कोमल प्रयोग की बात छूटी जा रही है। चन्द्रमा का प्रयोग तो
स्त्रीलिङ्ग में न हो या; परन्तु वर्णन-विशेष में चन्द्रकला' जैसे रूप बना कर
स्त्रोत्र में प्रयुक्त किए जाते हैं---सीधे-सादे । भोले } बनी को चमक-दमक से
दूर ही रहना चाहिए । चन्द्रकला शिव के सिर चढ़ कर कैसे-कैसे नाच नचा रही
है । इल्ली दरइ रद्द य पर “कमल’ ः विकास उतना अच्छा न रहेगा,
जितना मलिनः छा ! कलाधर के वियर में 'कुमुद ही जग्गूह 'कुमुदिनी
झा कैं; इन अधिक फवेगा । “भात’ को ‘भातवेला बना कर ही स्त्रीत्व
में योग कर सकते हैं, केवल “प्रभात झा नहीं। आबश्यकता पड़ने पर
स्त्रीलिङ्ग शब्द का भी पुप्रयोग कर सकते हैं; पर वैसा रूप दे कर ही ।।
सन्ध्या कृा भयंकर वर्णन करना हो, कोई रौद्र वर्णन हो, तो उसके आगे
'काल' शब्द लगा कर पु प्रयोग कर सकते हैं ! 'दकई के लिए फिर सन्ध्या-
छाल श्रा धूमझा । परन्तु ‘ना की तरह सन्ध्या ने सत्र को अपने अङ्क में
अाश्रय दिया वहाँ ‘सन्ध्या के श्रागे “समय' श्रादि कोई शब्द लगा कर
प"प्रयोग करना बहुत भद्दा हो जाए गा; और 'काल' शब्द तो एकदम सब
बिगाड दे च । सन्ध्या के समय दो मित्रों का मिलन चुन करना हो, तब
समय-निर्देश करते समय ‘सन्ध्या के आगे ‘समय लगा कर पुप्रयोग ठीक
रहे गा-धीरे-धीरे वह सुमय श्रायः, जब ताप-सन्ताप क्षीणता की ओर चला
और सन्ध्या-समय ने अपने बिछुड़े हुए बन्धु इन्दु के दर्शन किए। इन्दु ने
अपने छर दूर से ही फैला कर इस पुश-समय को रञ्जित कर दिया। ऐसा
वर्णन्द करने के अनन्तर बिछुडे हुए मित्रों का मिलन-वर्णन अच्छा रहे गा ।
परन्तु प्रियसी का सिलन बन करना हो, तब ‘सन्ध्या' या सन्ध्या-बेला’
दि स्त्री प्रयोग ही ठीक रहेंगे । ‘प्रिय इन्दु के करों का स्पर्श पाने के लिए
सुन्ध्या में बढ़ी । उस का अनुरा स्पष्ट ही सब ने देखा । सो, कोमलता
के लिए चन्द्र-इन्दु आदि का स्त्रीलिङ्ग-प्रयोग नहीं, इन शब्दों को
शब्दान्तर में स्त्रीलिङ्ग बनाना चाहिए।
संज्ञाओं की संख्या, या 'वचन'
झूिले शुर में देखा गया कि 'नाम' या संज्ञा-शब्दों के रूप को
बिर बभूके क्रिया या ई---'पुरुवं तथा स्त्री की तरई । इस प्रकर में
संख्या-3 व (वचन' } धूर चार क्रिया जाएगा ।
झवद्ध करने के लिए कदम और अलेशत्व प्रकट करने के
लिए वन' । यो छौजा है। संस्कृत में द्विवचन भी होता है ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२३९
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