पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२४३

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इकारान्त-ईकारान्त स्त्रीलिङ्ग शब्द के 'ई' या ‘ई’ को ‘इयु हो जाता है, जब किं ६ का ‘अ’ रूप सामने हो- निवि-निधियाँ, विधि-विधियाँ उपाधि-उपाधियाँ, समाधि-समाधियाँ नदी-नदियाँ, खाड़-खाड़ियाँ, धोती-धोतियाँ, कठिनाई-कठिनाइयाँ, छिपकली-छिपकलियाँ इकारान्त-ईकारान्त सभी तरह के स्त्रीलिङ्ग शब्दों से परे बहुत्व-सूचक उस 'ए' के 'अ' हो गया है और 'इ' तथा 'ई' को ‘इय' । नदी-नदियाँ श्रीः-श्रियः झी तरह । इन के अतिरिक्त अन्य सभी स्त्रीलिङ्ग शब्दों के निर्विभक्तिक बहुवचन में वही ' प्रत्यय रहता हैं:--- साता-माताएँ, गौ-गएँ संख्या-संख्याएँ, क्रिया-क्रियाएँ | ‘क्रियायें श्रादि गलत प्रयोग हैं। इकारान्त-ईकारान्त शब्दों के अन्त्य को ‘इयू होता हैं और उकारान्त-ऊकारान्त शब्दों के अन्त्य को ‘उ’ होता है। परन्तु अन्तर यह है कि ग्राँ में 'यू' बना रहता है, जब कि ‘उ' या ‘ऊ के सामने ‘ब्’ ठहरता नहीं है-लुप्त हो जाता है - बहू-बहुएँ, वस्तु-वस्तुएँ |सविभक्तिक बहुवचन ( स्त्रीलिङ्ग-पुल्लिङ्ग भी ) शब्द का एक ही विधि से बनता है। प्रकृति तथा प्रत्यय के बीच में एक ‘ओं विकरण आ आता है---अनुनासिक विकरण है; परन्तु ऊपर लेगी मात्रा के कारण न दे कर केबल • • दे देते हैं। अकारान्त पुल्लिङ्ग तथा स्त्रीलिङ्ग शब्द के अन्य ( 9 ) का लोप हो जाता हैं, और व्यंजन ‘’ में मिल कर -- बालर्को ने, बहनें ने, लुहारिन ने, छुहारों ने, लेते से, आँतों में, दाँतों से, खरबू से आदि । इसी तुरई अन्त्य 'आ' का भी लो- लड़कों ने, बुडदों ने, भल्लों में, कंडों से ऋदियों ने; डिबिर्यों में, बनि ने आदि ।