पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२४५

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( २०० ) बस, यही एकवचन- हुवचन बनाने की विधि है। कहीं कुछ विशेष भी है । 'दर्शन' का प्रयोग बहुवचन में ही होता है--‘आप के दर्शन । अप का दर्शन न होगा। *हत्तार' भी बडुवचन चलता है । | अदर में एक के लिए भी बहुजन श्राता है। गुरु जी आ रहे हैं । गौरव है । एक ही साल के बराबर ! कभी जाति में एक वचन होता है-

  • अंग्रेज साहसी होता हैं । ये इस दरह की बातें पद-प्रयोग से सम्बन्ध

लने वाली हैं। इस पुस्तक के अन्तिम अध्युश्य में इस विषय का विवेचन होना विष हमारे "अच्छी हिन्दी में मिलेगा ।। शुक्र समाप्त करने से पहले सम्बोइन की भी “बचन’---चर्चा कर लेनी चाईि } मु प्रत्ययान्त हिन्दी की संज्ञों के सम्बोधन में एक वचन प्रकारान्त होता हैं---तड़के: इधर अ! । वु' प्रत्यय से प्रभावित विदेशी शब्द भी --- ‘इरसबा, भाने नहीं ? | शेष सभी शब्द सम्बोइन के एक वचन में ज्यों के य रहते हैं । अाद- रार्थश्च बहुवचन में भीः--- कवि, तुम अपने मन की बात कहो अादर में बहुवचन, है; इस लिए सम्बोधन ‘कवि ही रहेगा } यदि संख्या में अधिक हो, तब--- ‘बिंय, कुछ तो सोच-समझो ।' यानी बहुवचन में 'ओ' विभक्ति श्रोती हैं और प्रकृति के अन्त्य -

  • ” ऋो ‘’ हो चाता है ? लकियो, ध्यान देकर सुनो !' *-*ऊ

के उद्” तथा “बु का लोच---‘बहुछ, भोजन अच्छा बनाओ । इसी तरह हाथियों श्रादि । साथियों गलत है ।। अन्त्व 'अ' तथा का लोप- बालक, लू प्रसन्न रहें । हो, खुश रहो ।' 'लड़कों बच्चों लत प्रयोग हैं ! परन्तु संस्कृत तल्तम अकारान्त शब्दों को कुछ भी नहीं होता; केवल अन् में 'ओ' का अता है-