पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२४९

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लिए बङ्ग' नास । परन्तु उद्भिज्ञों की अनेक श्रेणियाँ दिखाई पड़ीं । तब उन । श्रेणियों ) के शू-पृथक नाम रखे गए-वृक्ष, लता, गुल्म श्रादि । परन्तु वृक्षों के “ अनन्त भद ! तब इन कृ श्री-विभाजन कर के श्रम, जामुन, स श्रादि नाम। फिर आम भी कितने ही प्रकार के निकले ! तब इनकी पृथक-पृ% वश्ता के आधार पर कलभ' लँगड़ा' ग्रादि नाम रखे, जो विंडपए के रूप में चलते हैं। वृक्ष के सूखे अवयवों को लकड़ी कहते है, परन्तु सूखे बच्चों के लिए कोई पृथक् लाभ नहीं । लकड़ी भी ढीली-सूखी होती हैं, जिस के लिए कोई पृथक् संज्ञा नहीं । नील कमल को ‘इन्दीवर इते हैं; परन्तु अन्य नीले पदार्थों के पृथक-पृथक विशिष्ट नाम कहाँ हैं ? श्रू त से कम रखे ऊः सुकड़े हैं ! इस लिए शब्दों की एक पृथक श्री बनाई गई, पदार्थों की विशेषता प्रकट करने के लिए। नीला आकाश, नीले ब, नीला काऊ, मोल भंडप आदि । अब, चाहे जहाँ इस नीला विधि से काम ले लो। इन्दीवर' तो नीले कमल को कहते ही हैं, इस लिए उस के साथ नीला विशेष न लथे या, जरूरत ही नहीं। कलर इन्दीवर कट्ना गलत हो । । सम्भव्यभिचाभ्यां स्याद्विशेषण मर्थवत्’ -अब कोई विशेषता की कमी रहती हो, कभी न रहती हो, तभी विश्-व्दी का प्रयोङ होता है। विशेष प्रयोछन हो, तब ‘झीले श्रीकाश में चमकते हुए नक्षत्रों के मोती खूब फबचे हैं। ऐसी जगह श्राफाश फा नीला' विशेषय ठीक है। मोतियों की दमक नीलिमर में खूब खिलती है ! विशेषज्ञ से स्वरूप पाठक या होता के सामने आ जाता है। केवल श्रकाश’ ब्द् यद् उतना भन्छिा न हो; यद्यपि वह नीला ही दिखता है । खैर, जरूरत पड़ने पर, किंडी की विशेषता बतलाने के लिए जिन शब्दों ३ उपयोग किया जाता है, इन्हें विशेष' कहते हैं । विशेषता रंग-रूप में, श्राकार-प्रकार में, स्वाद में, परिमारा में दुधा अन्य विविध रूप में होती है । क्षेशतः ॐ इन्ही प्रकारों के अधार पर विशेषण-शब्दों का भी श्रेणी भाजन कर दिया गया है तुवाचक विशेषा, अवस्थावाचक विवाएं, परिमाणवाचक विशेष श्रादि । कही शब्द-भेद न होने पर भी प्रयोग-भेद से जाम-भेद हो जाता है.---'कुछ दूध, कुछ कृपड़ा' कुछ गेहूँ । वहाँ ‘दूध के साथ कुछ विशेष परिमारा बतलाता है। दूध नाप-तोल

  • बीच है। यह बात कड़ा' तथा गेहूँ के साथ है। परन्तु कुछ आदमी
    • सुरूत' 'कुछ बक्करिब आदि में कुछ संख्या बतलाता है। इस लिए