पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२५०

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यहाँ वह संख्या वाचक विशेष है। रंगीन कपड़ा' में रंगीन' विशेषण है; परन्तु 'रंग' भी कई प्रकार का होता है ! कैसा रंग ? जिज्ञासा होने पर 'रंग' के विशेष-भेद किए गए काला, पीला, हरा आदि । काला रंग में 'रंग' विशेष्य है और काला’ विशेषण हैं । “काला कपड़ा' में 'काला बिशेष है। कपड़े का रे “काला शब्द ने बता दिया । विशेष है। झाब यहाँ काले रंग का कपड़ा' कडूने की बरूत नों; क्योंकि रंग के लिए ही ‘फाजु ' शब्द है; स्वाद अदि के लिए नहीं है अब ‘झोला’ क्लों की लगा दीजिए, । जहाँ लग जा, सा, अपना काम करे 7 । सो, विण शब्द पृथक् अ लेने से भाषा में अनन्त सौर्य हो गया है। सभी भाषाओं में विशेष होते हैं । भाषा के प्रारकि काले में विशेष नहीं होते है पहले ते उधार प्राणि-ॐ ॐ तु पदार्थों के नाम ( सुझ} र र उन छ। दिशेपता को देख-देख कर विशिष्ट इन्दीर जैसे नाम । परन्तु संस्कार के अनन्त प्रार्थीि के तथा पदार्थों के कैंसे विशिष्ट नाम क द रखे जाएँ । शक्ति-ऋह भी कठिन ! प्रत्येक विशिष्ट पदार्थ के इन दाई करते-करते क्रया भी थक जाएँ। इसी लिए विशेष शब्द गढ़े गई। ‘कालः” समझ लिया और इस ! जहाँ भी यह शब्द लगा होगा, समझ लिया जा गा कि इस रंग की चीज । झाझा में नाम रखने के अनन्तर विशेषण बने; इसी लिए व्याकरण में भी उसी क्रम ले उल्लेख । संस्कृत में विशेष भी विभक्ति-युक्त होते हैं । जो विभक्ति विश्देष्य नै, वहीं विशेषण में भी रहती हैं; उदन’ भी । सुन्दरः बालकः, सुन्दरम् फलम्, सुन्दरी कन्या । सुन्दरेरण' बालकेन, सुन्दरेषु फलेषु, सुन्दभिः कन्याभिः परन्तु किन्दी मैं मार्ग-भेद है । यह ने, ो श्रादि विभक्तियाँ बिशेष्य में ही लगती हैं, विशेषण निर्वभक्तिक रहती है:- सुन्दर लङ्के ते, सुन्दर लड़कियों ने, सुन्दर गृह में । हिन्दी का चंद्धान्त युद्द है कि विशेषतः तः पदार्थ या प्राणी में ओत-प्रेत हैं। पृथक् उ ॐ स्थिति है ही नहीं, तब पृथक् विभक्ति देने से क्या लभ १ ‘सफेद घोड़े पर नजर है। यहाँ सफेद कुछ अलग तो है ही नहीं क्रि । ‘सझेद में विभक्ति जा र धो से उस का समानाधिकरवा बतलाय ; या अधिंकड़ प्रकट किया जाए ! केवल सफेदी पर नजर नहीं, केवल घोड़े पर भी