पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२५१

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( २०६ ) नहीं । जहाँ घोड़ा लाए गा, वहाँ सफेदी भी जाए गी । इसी लिए हिन्दी विशेषों में पृथक् विभक्तियों का प्रयोग नहीं करती। विशेष्य में लगी विभ- क्तियाँ ही उस ( विशेषण ) की भी विभक्तियाँ हैं । | थिभक्ति की ही रह 'स्त्री-व्यंकं पृथक् प्रत्यय भी हिन्दी प्रायः नहीं कागती, त्रिपों में। विशेष्य से ही बँधे हुए हैं विशेष । जो विशेष्य की जाति या दर, वही विशेष की भी ! केवल अपने कुछ विशिष्ट शब्दों में गइ, सा प्रदर्शन पृथकू जरूर यहाँ होता है। हिन्दी ने अपनी जो पुवि- भक्ति बनाई हैं---‘ा' (T }, यानी खड़ी पाई, उसे नहीं हटाती है । परन्तु इ चिह तो मुव्यंजक है-“बोड़ा' बछड़ा गधा' आदि । स्त्री-वर्ग में ‘घोड़’ ‘बड़ी’ ‘धी' शब्द-रूप हो जाएँगे। तब पु'विभक्ति-युक्त विशेषण 'काला' आदि यहाँ कैसे जमे मा १ 'काला घोड़ी' कैसे चले गा ? बिलकुल अलग ! "बोई की विशेषता कैसे बताए गा ? इस लिए, विशेषणों के पुव्यजक प्रत्यय को भी स्त्री-प्रत्यय में बदल दिया जाता है----‘काली घोड़ी' । यही स्थिति ‘बचन' में भी है । वहुवचन ‘घोड़े' होगा । पुविभक्ति बहुवचन में एकान्त हो जाती है। यही पु विभक्ति काला' विशेषण में भी है। तब ६हुवचन में इसे भी प्रकारान्त करना होगा-‘काले घोड़े। शब्दों के गढ़ने में इस प्रत्यय का उपयोग हुआ है और इस लिए इसे पृथक कर ही नहीं सकते । इसी लिए ऐसे विशेष में बचन्-भेद से या वर्ग-भेद से विशेष्य की तरह रूपान्तर होता है। परन्तु ने, को, में श्रादि विभक्तियों का प्रयोग विभक्त होता है। प्रकृति से इन फा अच्छेद्य सम्बन्ध नहीं, जैसा कि पुविभक्ति को । इसके लिए दिशेय-विशेप दोनों में स्वतन्त्रता से अन्वय हो जाता है---- ‘मुन्दर लड़के ने । संस्कृत में विभक्ति संश्लिष्ट है; इस लिए विशेषण में पृथक जरूरत-‘सुन्दरेवा बालकेन । यदि विशेषण-विशेष्य का सभास कर दिया , नत्र एक ही विभक्ति लगे ‘सुन्दरवालकेन। अब ‘सुन्दर- श्रीलझ' में विभक्ति लग ईं; विशेष्य-विशेषण में एक ही । समास कर देने से एक दिनकि म लनी पड़ । सुक्षेत्र हो गया । संक्षेप को ही समास कहते हैं । परन्तु हिन्द नै ‘ने का अादि विभक्तियों का विभक्त प्रयोग होता ३; इस लिए विशेद लें.पृथक् उने का प्रयोग करने की जरूरत नहीं । मयच अन्वय ही आता है। हिन्दी में विधि विभक्तियों के कारया स्वतः दी व्यवस्था है कि विशतु में पृथकू विभक्ति नहीं लगाई जाती; इसी लिंद इ. विशा-दिशेट्य रूः माघ प्रायः नहीं होता । ‘सुन्दर रामे' ऐसा