पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२५६

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लिए वे ही सन्न रूपान्तर । “कौन' से 'कितना विशेषण नहीं है । संस्कृत प्रकृति र संस्कृत ईई प्रत्यर्थ यहाँ हैं ! “किम् का ‘कि लिया और ‘मायन्तः इदानीन्तन' आदि से तन’ लिया; बुकिंभक्ति फिर अपनी लगा दी-कितना अका' | ‘तन' प्रत्यय का अर्थ भी बदल दिया---'परिमांण कर लिया | भइप- तौल का परिमाण और संख्या का भी परिमाण । हिन्दी में अव्ययों से ‘तन प्रत्यय नहीं होता; क’ से काम चलता है, जो मूलतः तद्धित-प्रत्यय ही हैं । अद्यतना; जनाः-श्रीज ॐ श्राद्र । अतः इतिः-श्रा की प्रवृत्ति । य अव्वर से दी र्चक (तन सर्वनाम में ला दी गई, इ% काम के लिए ? संस्कृत में *** *यत् कैयन झदि वि बनते हैं। ईन्दी में कितना-कितने-कितना सुये ‘कियत्' । किन भई निम्न सकता, जैसा कि लोभ दमक लेहे हैं ! इ किऊन होई दब अवश्य 'किंतु का विकास कहा जाता है हिन्द ने शनि के हैं लेकर प्रत्यग्न की स लिया । इसके अनेक उदाहरवा निरुत्त में मिल *कते हैं।

  • कितना' के धन पर फिर अपने ॐ आदि से जाना की 2लि

नाई हो यई । ' को भी, किन?? के वजन पर। वह झी 'उ' हो गया-‘इन’ इतना' के मुकाबले उतनः । कई वलियों में इतनः भी हैं । ब्रजभाषा में ‘तन' का न’ उड़ाकर त” मात्र ल्यय लिया और अरन्। ‘’ पुंविभक्ति-एहो, केत? जेतो । बहुवचन में 2-केते' और स्त्रीलिङ्ग में ‘र्ता' आदि। *इतर कितो' आदि भी चलते हैं और पूरक में “एचा 'अचा' अदि सी, अद्य स्वर का लघु उच्चार करके । यहाँ भी

  • श्र त्रिभर है. चा कानी' ची मिठाई ।।

| *ख्थांश प्रकट करने के लिए, “पा श्राधा २५ व ६ शब्द भी है व भूर झट' ! हे पाच वाद उच्च नौ ६ = ) पंड्या वा स्वरूप बताता है, जो कि परिणि १ ज ) के लिए निज हैं । उतन्नः श्रा, उस बz Kी हैं ॐ बराबर ! ८ देर के डर किसे झि, तो छौथा हिस्सा 'धन' हुअा। जानवरों के चार पॐ इंोते हैं । संस्कृत में प्रद' शब्द है, जिस से 'पा' बना; र किसी चीज को इतुयाहू बताने के लियू पाव' बना । घुकिसके इस लिए नहीं ली कि लाट ॐ चार अधरों को *पा' या पाया' अहते हैं । इई आधार रखने चीज को गेदर' कहते हैं। श्राधा' शब्द में पुंबिभक्ति है ही चै-के छात्र दोनो ओर ईंट जाएँ और अघी रोटी कौश्रा के गया ।