पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२५७

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आधा’ को ‘श्राध' भी हो जाता है---झाब मन, श्राधा मन । आध चाव, प्राधा पाव । श्राध सेर, आधा सेर ! स्त्री लिङ्ग ‘आधी' बनाने के लिए पुत्रिभक्ति जरूरी है---अधा-छाधी । 'सत्य' का तद्भव रूप सच' भी और विभक्ति से सदा भी ! सच कहो' आदि क्रिया-विशेषणों में सुच' ही रहे, लुच्चा नहु । इच बात का भी चलन है, परन्तु ‘सच गवाही है न होग-सी गवाही होगा। ‘सच्चा मामला’ और ‘सच्ची घटना। ऐसी जगह सुन न रहे। सच तथा सञ्चा' की ही तरह 'अ' और 'श्रधा के प्रयोग हैं। ‘श्राधा' चे ही ‘आधी’ बनता है। | इसी तरह ौन’ और ‘पौन' शब्द चलते हैं। पौन छटाँक श्रीर ‘पौन तोला । विभक्ति से पौने दाम पौनी कीमत’। पौन' या 'पौना' - तीन चभाई, यानी पद्' ( पाव )-ऊन एक । पाद-ऊन>पौन । ‘पाद के ८ का लोप श्रर तथा 'ऊ' में वृद्धि-सन्धि---पौन-पौना । बौदा' ६ वजन पर 'ऊन' के ‘उ’ को ‘औ’ करके पुंविभक्ति-ौना ।

  • अना' का पृथक प्रयोग नहीं होता; घट-बढ़' यो ‘कम-ज्यादा' के अर्थ

में "औना-यौना' चलता है। अरे भाई, इस समय औने-पौने में जमीन बेच ही दो; में स्थिति ठीक नहीं । यानी कुछ कम कीमत मिले, तो भी बैच द” । “ौनी-पनी कीमत में तो मैं साल फेंकें नहीं; आगे यह सवाये दार्मो जाएगा !' ( ऊन->ऊनः>ौना ) 1 औने-पौने' में पौने' के साथ "औने' देउ र भाषा में सर्वत्र ‘रोटी-ओटी' जैसे शब्द चलने लगे। औना' को यौना' का ही रूपान्तर समझ कर द्विरुक शब्द में व्यंजन या स्वर में परिवर्तन करने लगे-खाट-बाट' । अहीं अन्त्यांश में परिवर्तन ‘धूल-धड़' । यह प्रासंगिक । | "पौन' या धौना' शब्द जिसके साथ लाता है, उसी की ऊनता प्रकट फ़र है----'पौने चार रुपए-ऊनता चौथे रुप में है; चार में नहीं । तीन रुपए पूरे और चौथे में पद-ऊन; तीन रुपए-बारह आने । “चार में ऊना , तो 'तीन' ही रह जाएँगे। 'साढ़ा' शब्द सा से बना है। साढ़े चार रुपए’---चार रुपए और अा था । 'आर्द्ध-चतुष्टय सुभझिए ! इस काढ़े में भी पुंविभरि है; इस लिए बडुवचन में ‘अ’ को ए हो जाती हैं। सोद्ध>साढ़- = ऋ! | हिन्दी में इक और अचे' के लिए डेढ़ है और दो तथा प्राधा”