पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२५८

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है ‘दई ( ‘अढ़ाई } } ‘डेढ़' और 'ढाई विशेषणों में विशेष्य १ ‘क’ तथा दो) पृथक्र नहीं रहते। विशिष्ट शब्द डेढ़ तथः ‘हाई' बन गए हैं। 'तीन' से लेकर निन्यानवे तक ‘साढ़ा' का लादे' चलता है । परन्तु ‘अका का ‘सवे नहीं होता ! सवा दो गज’ सवा तीन क्षेर” ही चलता है । सर्वे दो’ ‘सुवें तीन' नहीं होता है यह क्यों ? इस लिए कि जैसे साद्ध का विकास ‘' और फिर उस मैं तु विभक्ति हैं। लग कर ‘साढ़ा बना हैं, ऊस तुरई 'लव' नहीं । यह विशेड्या संस्कृत *सपा का विकास हैं। क्षपाद' के 'द' कई लोप और ' को 'बा' ! या हिंन्दी * युनिभक्ति यहाँ नहीं हैं। इसी लिए ‘अ’ को ‘ए’ नहीं होता है लव ६ार रुपए का मतलब है—ार रुपए, चार अ ( पचीस गए पैसे } } परन्तु 'सा' वैसा आदि प्रकार-वाचक चि में विभॐ है; इसी लिए ‘एले लड़के से छे” अादि में 4 छ । “ हॉटा है। एक वन्दन में भी ( ' ग्रादि विभक के दंग में शुइके ने कैसें लड़के से कैसे लड़के ने ।' स्त्रीलिङ्ग में से लड़झी सी थः । यह पु विभकि की पहचान है। ऐसा कैसा' आदि विशेष भूलतः ईदृशः दृशः' के विकास हैं । इदृश'>ऐस’ र ‘कृ ’>कैत' । पूरब में ऐस' कैस' ही ( संञ्चा-युविभक्ति से रहित ) वोले जाते हैं; जैसे मीठ पार्न' । परन्तु ऐ' का उच्चार 'अ' जैसा होता है; जैसा कि संस्कृत ‘ऐश्वर्य’ आदि में ” झा । राष्ट्रभाव में 'ए' को उच्चारण अयु’ जैसा होता हैं और ब्रय तथा राजस्थान में भी ऐसा ही । स’ कैस' आदि में राष्ट्रभाषा की विभकि लगञ्जर रूप ‘ला’ ‘कैसः अादि । अञ्च त राजस्थान प्रादे में ‘श्रो विभक्ति ऐस' स’ में लगकर ऐस?' 'कैसो' बिशेष-२० । बहुवचन में आजभाषा भी खड़ी-बोलीं की ही तरह ग्रा’ को ‘ए’ कर देती है- ऐसे छोरे श्राए । एकचन में विशेहा राजस्थानी की दर और संज्ञा खड़ी बोली की तरह ‘सो छोरा मिल्यो । क्रिया का भी कान्दन । राजस्थानी की तरह ‘सिंय?' ओकारान्त । यानी ब्रजभाष बीच पड़ती हैं खड़ी-बोली (मेरठ) और राजस्थानी (जयपुर) के । फलतः दोनो से प्रभावित है। संज्ञा का रूप अकारान्त ( एकचन में ) छोरा होनेपर भी विशोषण,कारान्त रहे गो--‘ऐस' ! राजस्थानी में वन्दन की में सुंज्ञा भी श्रोकारान्त चलती हैं, जो राष्ट्रभाषा में श्रीकान्त हैं--- नाट्टको श्रायो’ | राजस्थानी का बहुवचन है---‘ऐसा लड़कर आया ‘भाठा