पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२६

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को नियम कहना भाषा प्रभाकर' का उद्देश्य नहीं है। यह उस शुद्ध हिंदी भाषा की नियमावली दिखलाता है जो प्रधान करके संस्कृत और प्राकृव से निकली है और जिसे गवर्नमेंट ने भी ठीक हिंदी समझा है। क्योंकि यदि ऐसा न होता तो स्कूलों में हिंदी और उर्दू अलग अलग कौस न होते और यदि हिंदी से संस्कृत का द्वार-संबंध गबन मॅट न समझती तो संस्कृत और फारसी पढ़नेवालों के लिये नीचे के जुर्गों में क्रस से भिन्न-भिन्न हिंदी और उदै के ग्रंथ न रखती ।, गवर्नमेंट का यही उद्देश्य है कि जो हिंदी पढ़ेंगे उन्हें इस हिंदी के बल से संस्कृत कुछ सुगन होगी और जो फारसी पढे उन्हें उस उर्दू से कुछ सहायता मिलेगी । बस बिचारे उर्दूवाले इस व्याकरण में न भटके । इस प्रकार हिंदी व्याकरण के निर्माण की जो दो परंपराएँ चलीं, उनमें हिंदी उर्दू को एक भाषा मानने वालों का व्याकरण मूलतः अंगरेजी व्याकरण को अनुसरण करता था और हिंदी को. उर्दू से स्वतंत्र भाषा मानने वालों का व्याकरण संस्कृत व्याकरण का अनुसरण करता था । शिक्षा- विर अंगरेजी ब्याकरण के अनुसरण पर लिखे गए व्याकरण को ही पसंद करता था इसलिये पाठ्यक्रम में उन्हीं व्याकरणों को स्थान मिला करता था। अंगरेजी व्याकरण के अनुरूप व्याकरण को सरकार केवल इसीलिए पसंद नहीं करती थी कि उसमें हिंदी और उर्दू भाषाओं के लिये समान नियमावली होती थी, बल्कि इसलिये भी कि अंग्रेजी व्याकरण के अनुरूप व्याकरण द्वारा हिंदी सीखे छात्रों को अंगरेजी सीखने में पर्याप्त सुविधा होती थी । स्वर्गीय दाबू श्यामसुंदर दास ने सं० १९६३ ( १६.०६ ई० ) में हिंदी और उर्दू का एक प्रारंभिक व्याकरण ऐन एलीमेंटरी ग्रामर अफ हिंदी पेंड उर्दू लिखा था । जिसकी प्रस्तावना में उन्होंने लिखा था ।

  • इस व्याकरण के निर्माण में मैंने संस्कृत व्याकरण के अनुरूप हिंदी

व्याकरण लिखने की पिष्टपेषित पद्धति का अनुसरण नहीं किया है। हिंदी यद्यपि मूलतः संस्कृत से ही उत्पन्न हुई है, परंतु अब उसने इतना भिन्न और स्वतंत्र रूप ग्रहण कर लिया है कि उपर्युक्त पद्धति का अनुसरण किसी भी तरह समीचीन अथवा सुरक्षित नहीं है। इसके अतिरिक्त, आज किसी भी विद्यार्थी की शिक्षा अंगरेजी भाषा के संतोषजनक ज्ञान के बिना पूर्ण नहीं समझी जाती । अस्तु, यदि अंगरेजी भाषा के व्याकरणों को आदर्श मानकर