पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२६४

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‘दुनिया के बगीचे में कैसे सुन्दर फूल खिले हैं। इसी तरह भेदक भी ‘राजा का पुत्र वह राम जंगलों में भटकता फिरा' ! लखनऊ शद्दर' सामान्य विशेध हैं । शाइर सामान्य है । यह विशेषश लखनऊ समझिए । कभी-कभी ‘रूप न होने पर भी आरोप देखा जाता हैं—कारण-कार्य ‘विद्या परम सुख हैं। विद्या का विशेष ‘परम सुख, नहीं है, का है। विद्या से परम सुख होता है । परम सुख । ॐ निह बदल रहा है । ‘सायिक विद्या लाभ दिया’ अह सारिक' दर तास' शब्द विद्या की विशेषतः जरूर जाते हैं। परन्तु व परम सुन्। ६ में शुइ द न । व कार्य-कर भइ बियत है। विद्या । पर मुझ कर रहे बताइन! अष्ट हैं। इस लिए, यद् विघ? ल । हिन्दं * *कुर में राम मूर्ख हैंइनदिं प्रयोग में 'मूर्ख' जैसे शब्द * *पूरक' नाम दिया गया है। भूख लड़को दुख पाती हैं' में ‘मू विशषष हैं; परन्तु ‘लड़का मूलं है' का स्वाद,, तो 'मूर्ख' पूरक है; ऐसा 'वाद' ! परन्तु ‘ब्रजभः छः कृट व्याकर' प्रकाशित होने के अन्दर प्रवाह बदल गया । मूर्ख लड़का दुख पाता है' में वि उद्देश्य से हैं और लड़का मुर्ख है' में 'मूर्ख' विशेषण ‘विवेय’ रूप से हैं । कुछ स्पष्टता से--‘विधेय-शेिषण’ | ऊन्न किसी की विशेषता का चिंघन करना हो, तो • विशेड विधेय रूह से आता है । बिधेय फ़ा पर--प्रचड़ देती हैं, उद्दश्य झा पूर्व- प्रश; यह सामान्य विधि । “अच्छा लइका पढ़ता है' में अच्छ' विशेष लड़के की विपक्षी दल ---उद्-विशेष ३ । परन्तु राम अच्छा लड़क है' में हैं। बचे--विशेष' हैं । ‘छ हुई ' में दु' ' विशेष' है ! ‘लक अच्छा है, पड़ हैं' में भी अच्छ” वर्ध-विष्णु हैं परन्तु लक! अङः पढ़ता है में अच्’ लिया-वि है; क्रिया हूँ विशेषता ब्रहला र है । क्रिया- बियों का उल्लेख पुस्ल के उद्ध में हो । विधेय-विशेष्यमा को हिन्दी-व्यारों में पहले ‘पुरक' कहा करते थे । जब 'व्रजभाषा का व्याकरण छपा, तब स्थिति बदली ! व्याकरण में संशोधन होने लगे; परन्तु एक प्रमुख व्याकरण ने विधेय विश्व स्वीकार झरके भी ‘उद्देश्य-विशेष’ को ‘विशेश्य्-विशे' नाम दिया है ! विशेष्य के