पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२७

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हिंदी-उर्दू व्याकरण की रचना की जाये तो उससे अंगरेजी भाषा सीखने में भी सुविधा होगी। इसीलिये, मैंने, अबतक जिस सिद्धांत पर हिंदी उर्दू के व्याकरश बने थे, उसे छोड़कर अाधुनिक अंग्रेजी व्याकरण के निर्देशों को स्वीकार किया है। ऋतु, छात्रों के पाठ्यक्रम के लिये बने व्याकरणं ग्रंथों में कुछ में। अंगरेजी भाषा के व्याकरण के आदर्श स्वीकार किया गया था; कुछ में संस्कृत भाषा का, और कुछ व्याकरण ऐसे भी बने जिनमें अंगरेजी और संस्कृत के व्याकरणों के नियमों के समन्वय का प्रयास किया गया । महामहोपाध्याय पं० सुधाकर द्विवेदी और शीतलाप्रसाद त्रिपाठी जैसे दो चार ऐसे भी विद्वान् थे जिन्होंने संस्कृत के प्रकांड विद्वान् होते हुए भी, हिंदी की स्वतंत्र प्रकृति को पहचान र उसका स्वतंत्र व्याकरण लिखा ।। व्याकरण-रचना के इस दूसरे दौर में राजा शिवप्रसाद सितारेहिंद, भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र, अंबिकादत्त व्यास, दामोदर सप्रे शास्त्री, केशवराम भइ, सुधाकर द्विवेदी, माधवप्रसाद पाठक, सूर्य प्रसाद मिश्र, प्रभृति चोटी के विद्वानों ने छात्रोपयोगी व्याकरणों की अपने ढंग से रचना की । इन व्याकरण में छंद रचना को भी व्याकरण में स्थान दिया गया एवं विशेषण और सर्वनाम शब्दों को अलग न मानकर संज्ञा के ही भेदों में परिगणित किया गया । संज्ञा के पाँच भेद जातिवाचक, व्यक्तिवाचक, गुणवाचक 1. In the preparation of this graturmar, I have not followed, as already stated , the stereotyped rethod of writing Hindi Grammars after the Sanskrit ones. Hindi, although ociginally born of Sanskrit, has now assumed so different a form thas it is not at all advisable or safe to follow that method blindly, Besides, the education of a boy is not now considered complete, without a sufficiently good knowledge of English. If, therefore, a Hindi-Urdu Grammat could be cori. pied aftes the rnodel of the Grammats of the English language, it would facilitate the study of that language. I have, therefore, rejected the principle on which all grammars of Hindi and Urdu languages have so far been written and have accepted the guidance of modern English Grammars.