पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२८१

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( २३६ ) मैं श्राप कर *ग' दि में ‘आप’ शब्द भिन्न है। स्वयं या सुद | का अर्थ यह है । यह श्राप’ शब्द ‘सर्वनास’ नहीं, विशेषण है । जोर देने के लिए पर-प्रय हैं । ‘स्वयं' की तरह इसे भी अव्यय' कह सकते हैं । अवय भी विशेषण तथा क्रिया-विशेषण के रूप में चलते हैं। रामःस्वयं अःचते-राम स्वयं माँग रहा है । यहाँ “त्वयं को विशेषण न मान कर स्वतंत्र अव्य-प्रयोग मानें, दो हिन्दी के इस प’ को भी वैसा ही समझ सकते है। परन्तु यह ‘सर्जनाम' नहीं है । संस्कृत के श्रात्म’ से इस का उद्भव जान पड़ता है। अात्मानं पृच्छ-अपने श्राप से पूछ ! यह आत्मन्' प्राकृत- परन्तर से ‘अ’ बन कर ब्रा राया है। आसन्' को अर्थ “स्व” या स्वयं भी है और स्वकीय' भी हैं । “स्वयं के अर्थ में तो यह ‘आप’ है और स्वकीय' के अर्थ में अपनर' है । आत्मनः--‘अप्पण-अपना’ ! अपन' में पुविभक्ति श्रीना' । इसी से अपने और अइनी' । यानी अात्मनः' से न लेकर

  • श्रा में ला लिया । “अ” ह्रस्व है। गुबा-आश्ना' | यह 'न' हिन्दी का

तद्धित-प्रत्यय है, ‘क’ २’ को तरह-आप फा, मेरा, ‘अपना' । संस्कृत में भी “स्व” का स्वक' और तद्धित-प्रत्यय-‘स्वकीय' । “स्व” से “स्त्रीय’। इसी तरह हिन्दी में अप' से 'न' प्रत्यय--अपना' ! ‘क’ प्रत्यय दूसरे ‘आप’ से हैं-

  • आपका झुर' ।

संस्कुई में आत्मनः सर्वे नश-अपना सर्वे कुछ ले जा । झात्मनः' का प्राकृत रूप ‘अप्ण होता है, जिस से ब्रजभाषा का ‘अपनो’ है। राष्ट्रभाषा ( खड़ी बोली } बिन प्राकृत के वंश में है, उस में 'अप्पणा' रूप बनता हो गा । यही 'अणा हिन्दी का अपना' शब्द है ! विसर्गों की खड़ीं पाई (पुंबिभक्ति } स्पष्ट है। इसी लिः अपने कपड़े और अपनी टोपी' में

  • एई। कहने का मतलब यह कि दरार्थक और मध्यम पुरुष में प्रयुक्त

होने वाले श्राप सर्वनाम से वै ‘स्वयं तथा स्वकीय' अर्थों में चलने वाले अप’ एवं पना' शब्द भिन्न हैं। व्याकरण में 'न' प्रत्यय कर के और सं क्ति ? ' ' } लगा कर अपनी-अपनो चमकाया जाए ? । पूरन मैं संश-विभक्ति के बिना अपन घर'-अपद सब कुछ' ।। 'अप' का प्रयोग कभी-कभी अन्य पुरुष' में भी होता है। आज श्ल अपने जिले के प्रशासक बाबू कुंजबिहारी वर्मा हैं । आप बड़े ही मिलनसार तथा न्यायप्रिय हैं ।' 'तुम' के लिए भी प्रयोग अन्यपुरुङ में ही होता है-