पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२८४

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बिगड़ जाए या । इवी लिए सदश्य प्रयोग होते हैं ! परन्तु स्वतन्त्र ति से ग्वइ’ की जगह से नहीं चलतः । वाक्य के प्रारम्भ में--- सो, खूब सोच-विचार कर ही श्रागे वड़िए गा । हो, तुमने जाने का निश्चय कर ही लिया १ यो, 'सो' तथा ' के अय हो है । इनके कारन्तर में योग नहीं होते ! ऐसी स्थिति में, शूभ में, ३ ' तथा 'तो' अव्यय ही हैं;

  • *ज्यों आदि की तरह । प्रकल्प रहने वाले शब्द छ ।' हैं ।

संस्कृत में चिरम्' तथा 'चिए' श्रद शय द्विन्दः-दुतीया तिकियों से युक्त (लन् ‘कालेन' आदि की तरह समय-31 का ज ड़ते हैं, परन्तु “तस्मिन् ससथे' श्रादि । तर निरश्किान् काल! ॐ पर नहीं। होते । केवल *रिस्मिन् भ भई । इस लिए उन्हें व्यय इ9 : हैं । जो करे गा, से भरे ग म *सो अवश्य सर्वनाम है, परन्तु उस तरह वाक्य के अदि में आनेवाले सौ और त* किसी का भी वेंचर परभई नहीं करते । निझर्ष अादि प्रकट करते हैं संस्कृत में पशु अव्यय भी है, परन्तु भिन्नार्थक यही बात हिन्दी के ‘स' तथः ‘ती’ अव्यों की है । इन्हें ‘सर्वनाम-प्रतिरूपक' अश्यय समझिए । पूर्व-कथन का अाधार लेकर हीं प्रवृद्ध होते हैं । यदि प्रहले कोई बात न कहीं हो, तुझ इन दो-तो ) अव्ययों का प्रयोग कभी भी किसी बक्य के ग्रारम् ॐ न हो । हिन्दी का क्या' भी अव्यय ही हैं--प्रश्नार्थक । क्षुद्र जड़ मृदार्थ, या कीट-पतंग अादि की विचे जिज्ञासा में श्रादः है---‘क्या पड़ा है दूध में है। कारण मैं भी आता है-*क्या सो रहे दो दिन में ' ' के अर्थ में ! विशेष के रूप में भी - ‘क्या-क्या बातें हुई ?' क्या अब हुई क्या हाल है } अव्वय विशेष-रूप में भी चलते हैं ।। |'कुछ' शब्द भी अव्यय ही है और विशुत्र ज्ञान के अभाड़ में अचुक होता है-*दूध में कुछ पड़ा है। वही क्षुटू द पदाय, झट-पतंग आदि का विषय | परन्तु विधय-ध से चलने पर जो विशेश्य के साथ शा छता है--‘कुञ्ज घोड़े कुछ अल' । निश्चित संख्या अरि अनिविदत परिमा बताता है। कर्म-कभी विषण दिशेद के बिना भी आते हैं. द्विान्