पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२८७

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केई के विभिन्न कार में रूप-~- किसी को, किसी ने, किसी पर, किर्ज से श्रादि होते हैं । प्रश्नार्थक कौन के रूप—-किस को, शिख , वि पर, किस से य अकारान्त होते हैं । किस रूपान्तर दोनों का समान । यह स्कृत की पद्धति है-*फस्मिन' और ८अशिक्षित या कृत्मिज्ञ | हिन्दी के चित्’ को नहीं, अपि' झी रूपान्त- रित फर के कोई’ बनाया है। फिर अपनी (कोई' की } “ई” का सर्वत्र प्रयोग ! कौन' को 'किस' हो ही जाता है, विभक्ति या शब्दान्तर सामने होने पर-किस ने किसे लड़के ने । दूसरे प्रयोई में भी विभक्ति के कारण ईः ‘क्रिस' अादेश है; अन्यथा कौन छात्र छाए र ?' आदि में कौन' ही रहे गा; विशेध्य सामने रहने पर भी । संस्कृत ‘क’ प्राकृत ‘क’ ( अवधी आदि में भी ‘क’ ) राष्ट्रभाषा में कौन' । विभकं आगे आने पर कौन' को 'कि'; जैसे यह-व’ को ‘सु- ‘इम्'। कोई विभक्ति या तद्धित सम्बन्ध-प्रत्यय परे होने पर किसी’ बन जाज्ञा है--किसी ने किसी का श्रादि । यानी इत्यंश ('को’ ) को किस हो गया और आगे ( ‘अपि' वाली } ‘ई है ही । किस-+ई =किसी । किसी ने, 'किसी का' आदि । सर्वत्र एकवचन-- किस ने, किसी पर, किसी से; इत्यादि । कोई शब्द संस्कृत के पकड़चन कोऽपि' का रूपान्तर है, इस लिए स्वभावदः एक देन है। इस का ‘बहुवचन' नहीं बनता; परन्तु आवश्यकता पड़ने पर द्विरुक कर के झाम चला लेते हैं- कोई-कोई इसके विपरीत भी कहते हैं किसी-किसी के भत में वेद ईश्वरीय रचना नहीं ।'

  • किसी-किसी के मन में' का मतलब कुछ लोगों के मत में' । विशेष

ज्ञान होने पर भी अविवक्षित हैं। यही बात कोईई में भी है। वस्तुतः ‘कौन' भी कुछ ऐसा ही है। इसी लिए किस का' आदि क्रवचन' ही रूप देखे जाते हैं, और 'कौन अाता है। श्रादि एकवचन ही अयोग अधिक होते हैं। छ हुवचन के लिए इसी कारण द्विरुक करनी पकृती है--