पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२९०

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और इक्ष लिए श्रोत ः वैसी ही उमादा है । यह कहने की आवश्यऋतर नहीं के “हिन और ईरनियाँ' । बिनियों का प्रतिनिधित्व भी रन' से हो गया । 'रि' शब्द में 'हिरनी भी अन्तर्हित हैं। इसी को शब्दों का

  • डकर इम काइते हैं। स्कृत में इसे कुशेष काइते हैं। दो में हैं

एक शब्द शेष रहता है, ए लुप्त हो जादा है। शहर में देला जात हैं कि मानसिक झुकाव जिस ओर अधिक इ, ऊ का उच्च होता हैं और शेर स्वतः गृहीत होता है । ऊरर के उदाहर नै ३, वर्गीय ब्द सामने हैं और स्त्री व लुनु वः अन्धरिस हैं । परन्तु यह सर्वत्रिक और एल नियम न हैं कि ये शब्द । सद: सामने रहे छः सदा वर्ग का शब्द लुत् ६: रु। ६ र रही हूँ करि चर रही हैं । इ ई ई से अब मैं बार ब्द की प्रध:नाइ है; कुंवाझ शब्द ( बैल, २को तथा * } झोडत हैं । यहाँ एँ र रई है, वह बैल अंः र ॐ हूं; नत्र अर्हः देते हैं ---- दर र हैं। इस तरह बकरे * चर रहें है और भ्रकरिंथ भी कर रहे हो, तो कुई देते ई-बक ः रही है। परन्तु इइ र इथि:: ऊँ और ऊँनी, घोङा और घंटू आदि का इार पुंश्रया से होता है । ‘इस जंगल में हाथ बहुत रहते हैं। मतलब यह र हाथी से ही नहीं हैं । इथिनियाँ भी क्रोडीकृत हैं । *ट में इंड़ेि जुलते । वहाँ ‘धड़ी छू मं श्रन्तभव है। | वा कारगडू किं एक जगह स्त्रीवशीय ( गौ, बकरी, कैंस झादि } शब्दों से वर्गीय ( चैल, इकरे तथा भैंसे आदि ) शब्द का अहवा होता है और अन्यत्र घुबर्गीय ( घोड़ा आदि ) से स्त्रीथि { ही श्रादिं ; का ? कोई झार होना चाहिए । ६ कारण । प्रधानतः ५ प्रधान में मानव- भादन कार है और भावना में स्वार्थ कारण है । इष्टि में मुंबई अधिक [क्तिशाली दिखाई देता है और इसलिए सकारह व लड़ने के काल में इंजय पशु को हुँ अधि% पसन्टु किया जाता है । इस लिए छोड़े, ऊँट तथा इथं श्रदै क शेर ने दी है और झट कह दिया लेता हैं--- थोड़े यज़ है जंले ६ । चाहे से भी हल छिब्दः पाता शे; परन्तु बोलने में बड़े ही अगर । बैल तथा भैंसे की-हुल आदि में जोते छाते हैं, परन्तु यहाँ मनुष्य का स्वार्थ दूध-दी से अधिक संबद्ध हैं। दूधमी आदि की र अधिक