पृष्ठ:हिंदी साहित्य का आदिकाल.pdf/१०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चतुर्थ व्याख्यान गई-- सात्त्विक विकारो से ससाध्वसा वह सुन्दरी भाग गई। भागते-भागते भी पृथ्वीराज को निहारती गई, खाली घडा गंगा के तट पर पड़ा रह गया- दरस त्रियन दिल्ली नृपति सोबन घट पर हथ्थ । वर घूघट छुटि पट्ट गौ सटपट परि मनमथ्थ । सटपट परि मनमथ्थ भेद वच कुचतट स्वेदं । उष्ट कंप जल द्रगन लग्गि जंभायत भेदं। सिथिल सुगति लजि भगति गलत पुंडरितन सरसी॥ निकट निजल घटतजै मुहर मुहरं पति दरसी ॥ ६२-३७० कवि भावी रोमास का बीज यहीं बो देता है। इसके बाद मगर का, किले का, सेमा का, दरबार का और अन्य बातों का वर्णन करने का बहाना खोज निकालता है। एक बहुत ही मजेदार प्रसग कवि चद का राजा जयचंद्र के दरबार में जाना है। जयचंद्र के दरबार में कोई दसोंधी कवि थे। ये सभवतः वर्तमान जसोधी जाति के हैं जो आज भी कडखे और नाजि कहनेवाले जोगवरों की जाति है, या यह भी हो सकता है कि इस नाम का कोई कवि रहा हो और श्राज के जसोंधी अपने इसी पूर्वपुरुप के नाम पर अपना परिचय दिया करते हों । दसोंधियों और चन्द के वार्चालाप से चंद की सर्वशता का परिचय मिलता है । चद अदृष्ट बातों का-जिनमे स्वयं राजा जयचद्र और उसके दरबार की तात्कालिक अवस्था भी शामिल है-वर्णन सफलतापूर्वक करता है और इस प्रकार कवि चद दरबार में प्रवेश करने का अधिकार पाता है। और जयचद्र जब पृथ्वीराज के विषय मे प्रश्न करता है तो तुर्को-चतुर्की जवाब देता है। इसी प्रसंग में कवि पृथ्वीराज की वीरता के वर्णन का बहाना भी खोज निकालता है | जब जयचंद्र पूछता है कि क्यों नही पृथ्वीराज उसके दरबार में और राजाओ की भाँति अाता तो चद बताता है कि पृथ्वीराज ने तुम्हारे राज्य की रक्षा की है। शहाबुद्दीन गोरी जब कन्नौज पर आक्रमण करना चाहता था तो पहले तो कुन्दनपुर के पास रायसिंह बघेले ने उसे रोका; परन्तु वह उसे पराजित करके श्रागेवढा । उस समय पृथ्वीराज नागौर में थे। वे बाज की भाँति शहाबुद्दीन पर झपट पडे । इमी बहाने कवि विस्तार के साथ इस लडाई की चर्चा करता है। स्वय पृथ्वीराज भी दरबार मे चंद के खवास के रूप मे उपस्थित होते हैं और इस प्रकार कवि ने पृथ्वीराज -सबन्धी वार्तालाप में स्वयं उसे श्रोता बनाकर एक प्रकार का नाटकीय रस ला दिया है। जयचंद्र के मन में एकाध बार सन्देह होता है, पर पृथ्वीराज खवासवेश मे दवार के बाहर आ जाता है। लेकिन अन्त तक यह बात छिपती नहीं। पृथ्वीराज का पडाव घेर लिया जाता है, युद्ध का नगाडा बज उठता है और इसी युद्ध के बीच पृथ्वीराज अकेले कन्नौज की शोभा देखने चल पड़ते हैं। युद्ध का रोर सुनकर कन्नौज की सुदरियों अयारियों पर आ बैठती हैं। घोर युद्ध होता है और उसी दुर्दर युद्ध की पृष्ठभूमि में कवि ने रोमास का आयोजन किया है। चद की यह अद्भुत घटना-योजना-शक्ति रासो में अन्यत्र कहीं भी प्रकट नहीं हुई। तलवारें चमक रही थी, घोड़े और हाथियों की सेना में जुझाऊ बाजे बज रहे थे, वीरदर्प से कन्नौज मुखरित हो उठा था और मस्तमौला