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हिन्दी-साहित्य का आदिकाल

हिन्दी साहित्य का आदिकाल गया है। क्योंकि इसे कभी-कभी सोरह दोहा ही कहा गया है और ग्रामीर-गुर्जरों का सौराष्ट्र से पुराना संबंध है। सब मिलाकर ऐसा लगता है कि दोहा का कुछ संबंध संभवतः श्राभीर आदि जातियों से स्थापित किया जा सके; परन्तु यह बात ठोस प्रमाणो पर कम और अटकल पर अधिक अाधारित है। गाथा प्राकृत-भाषा की प्रकृति के अनुसार दीर्घान्त छन्द में और दोहा अपभ्रंश-भाषा की प्रकृति के अनुसार हस्तान्त छन्द के रूप मे है। यह छन्द नवीं-दसवीं शताब्दी मे बहुत लोकप्रिय हो गया था। इस छन्द में नई बात यह है कि इसमे तुक मिलाये जाते हैं। संस्कृत, प्राकृत मे तुक मिलाने की प्रथा नहीं थी। दोहा, वह पहला छन्द है, जिसमे तुक मिलाने का प्रयत्न हुश्रा और आगे चलकर एक भी ऐसी अपभ्रंश कविता नहीं लिखी गई जिसमें तुक मिलाने की प्रथा न हो। इस प्रकार अपभ्रंश भाषा केवल नवीन छन्द लेकर ही नहीं पाई, बिलकुल नवीन साहित्यिक कारीगरी लेकर भी आविमूत हुई। ईरान के साहित्य में मुस्लिम-पूर्वकाल मे भी तुक मिलाने की प्रथा थी और बाद मे तो फारसी गद्य मे भी तुक मिलाकर लिखने की प्रथा चल पडी जिसका निश्चित अनुकरण विद्यापति की कीर्तिलता के गद्य मे मिलता है। छठी-सातवीं शताब्दी तक भारतवर्ष में उत्तर-पश्चिम सीमान्त से अनेक नई जातियों का आगमन हुआ और उनके कारण इस देश की भाषा में भी नए-नए तत्त्व प्रविष्ट हुए और कविता भी नवीन कारीगरी से समृद्ध हुई। हो सकता है कि यह तुक मिलाने की नवीन प्रथा भी नवीन जातियों के सम्पर्क का फल हो। इसमे तो कोई सन्देह ही नहीं कि दोहा नवीन स्वर मे वोलता है। स्त्रियों की अद्भुत दपोंक्ति जो आगे चलकर डिंगल-कविता की जान हो गई, इन दोहों मे प्रथम बार बहुत ही दृप्त स्वर मे प्रकट हुई है- मह कन्तहो बे दोसड़ा, हेल्लि म झकहि श्राल। देन्तहो हऊँ पर उन्वरिय, जुज्झन्तहो करवालु ।। ऐ सखी, वेकार बक-बक मत कर। मेरे प्रिय के दो ही दोष हैं--जब दान करने लगते है तो मुझे बचा लेते है और जब जूझने लगते हैं तो करवाल को | जइ भम्मा पारकडा तो सहि मझु पिएण । अह भग्गा अम्हत्तपा तो ते मारिअडेण ।। यदि शत्रुओं की सेना भगी है तो इसलिये कि मेरा प्रिय वहाँ है, और यदि हमारी सेना भगी है तो इसलिये कि वह मर गया है ! जहिं कपिज्जइ सरिण सरु, छिज्जइ खगिण खग्गु । तहिं तेसइ भड घड निवहि, कन्तु पयासइ मम्गु ॥ जहाँ बाणों से बाण कटते हैं, तलवार से तलवार टकराती है, उसी भट-घटा समूह मे मेरा प्रिय मार्ग को प्रकाशित करता है। भग्गउँ देक्सिवि निययवलु बलु पसरिअउँ परस्स । उम्भिलइ ससिरेह जिवं करि करवातु पियस्स ।। जब प्रिय देखता है कि अपनी सेना माग खड़ी हुई हैं और शत्रु का बल बढ रहा है