पृष्ठ:हिंदी साहित्य का आदिकाल.pdf/११२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पंचम म्याख्यान तंब चन्द्रमा महीन रेखा के समान मेरे प्रिय की तलवार खिल उठती है (और प्रलय मचा देती है!) आयइंजम्भहिं अन्नहिं वि गोरिसुदिज्जहि कन्तु ।। गयमत्तहँ चतंकुसह जो अभिडहि हसन्तु ॥ इस जन्म मे भी और अगले जन्म मे भी हे गौरि, ऐसा पति देना जो अंकुश के बंधन को अस्वीकार कर देनेवाले मदमत्त हाथियों से अनायास भिड़ जा सके। संगर सएहिं जु वरिणभइ देक्खु अम्हारा कन्तु । अहिमत्तहँ चत्तकुसहँ गय कुम्मेहिं दारन्तु ॥ वह देखो, वह मेरा प्रिय है जिसका बखान सैकड़ो लड़ाइयों में हो चुका है। वह-जो अंकुश को अस्वीकार करनेवाले मत्त गजराजों के कुम्म विदीर्ण कर रहा है ! गाथा की भाँति अपभ्रंश के ये दोहे अपने-आपमे परिपूर्ण मुक्तक काव्यों के वाहन स्वीकार किए गए थे और सच पूछिए तो दोहा मुक्तत-काव्य का ही सफल वाहन है। यह प्रबन्ध या कथानक के लिये उपयुक्त छन्द नही मालूम होता। ढोला मारू के दोहे यद्यपि कथानकरूप मे लिखे गए हैं, परन्तु वे वस्तुतः मुक्तक ही हैं। इसी कथानक्र-सूत्र को जोड़ने के उद्देश्य से सोलहवीं शताब्दी मे दोहो के बीच-बीच में चौपाई जोडकर कथानक को क्रमबद्ध करने का प्रयास किया गया था। चौपाई छोटा छन्द है, वह कथानक को सहज ही जोड देता है । अपभ्रंश-काल के प्रारम्भ से ही इस छन्द के इस गुण को समझा जाने लगा था, परन्तु इसकी ठीक-ठीक प्रकृति जानने मे कुछ समय लगा। __ अपभ्रश के काव्य कडवक-बद्ध हैं । पन्झटिका या अरिल्ल छन्द की कई पंक्तियों लिख- कर कवि एक पत्ता या ध्रुवक देता है। कई पज्झटिका, अरिल्ल या ऐसे ही किसी छोटे छन्द को देकर अन्त मे पत्ता या ध्रुवक- यह कडवक है। प० नाथूरामजी 'प्रेमी ने लिखा है कि अपभ्रश-काव्यो में सर्ग की जगह प्रायः सन्धि का व्यवहार किया जाता है। प्रत्येक सन्धि मे अनेक 'कडवक' होते हैं और एक कडवक आठ 'यमकों' का तथा एक यमक दो पदों का होता है। एक पद मे, यदि यह पद्धडियाबद्ध हो तो सोलह मात्राएँ होती हैं। आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार चार पद्धडियों यानी आठ पंक्तियों का 'कडवक' होता है। हरएक कडषक के अन्त मे घत्ता या ध्रुवक होता है (जैन-साहित्य का इतिहास, पृ० ३७७ टि०)। श्ररिल्ल चौपाई का ही पूर्वरूप है। कथा-काव्य में इसका खूब प्रयोग भी हुआ है। परन्तु शुरू-शुरू मे चौपाई की अपेक्षा अपभ्रंश मैं पद्धड़िया का ज्यादा प्रचार था। जिस प्रकार आजकल हमलोग चौपाई लिखने में तुलसीदास की श्रेष्ठता बतलाया करते हैं उसी प्रकार स्वयभू ने चउम्मुह या चतुर्मुख को पद्धड़िया का राजा बताया था। हरिवंशपुराण मे उन्होंने कहा है कि पिंगल ने छन्द-प्रस्तार, भामह और दण्डी ने अलकार, आण ने अक्षराडम्बर, श्रीहर्ष ने निपुणत्व भोर चतुर्मुख ने छर्दनिका, द्विपदी और ध्रुवकों से जटित पदहिया दिया--- छद्दणिय धुवएहिं जडिय । चउमुहेण समप्पिन पद्धडिय। (जै० सा. इ०, पृ० ३७१-३७२)।