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हिन्दी-साहित्य का आदिकाल

१०६ हिन्दी साहित्य का मादिकाल त्रीहि लक्ष तुषार सबल पाषरीभई जसु हय, चऊद सय मयमत्त दति गज्जति महामय । बीस लक्ख पायक सफर फारक पणुद्धर । ल्हूसडु अरु बलु यान सखं कु जागई ताहं पर। छत्तीस लक्षानरहिवई बिहिविनडओिहो कीम मयड, जइचंद न जाणउजल्हुकइ गयउ ‘क मूडं कि धरी गयउ ।। -पु० प्र० सं०, पृ० ८८, पद्य २८७ असिय लष तोषार सजउ पप्पर सायदल । सहस हस्ति चवसहि गरुम गज्जत महावल ।। पंच कोटि पाइक सुफर पारक धनुद्धर । जुध जुधान वर बो तोन बन्धन बद्धनभर ।। छत्तीस सहसरन नाईवौ विही त्रिम्मान ऐसो कियो। जैचंद राई कविचंद कहीउदधिबुड्डि कैधर लियौ । -पृ० रा०रा०, पृ० २५०२, पद्य २१६ एक मनोरंजक बात यह है कि चदंवरदाई ने संस्कृत और प्राकृत श्लोक लिखने का भी प्रयास किया है। संस्कृत वे साटक या श्लोक छन्द में लिखते हैं और प्राकृत गाहा (गाथा) मे। इन दोनो वातों को देखकर अनुमान किया जा सकता है कि अपभ्रंश वे दूहा और छप्पय मे लिखते होंगे। छापय आगे चलकर डिंगल का प्रधान छन्द हो गया है, पर यह संस्कृतवाला साटक क्या है ? रासो के सम्पादकों को इस नाम की व्याख्या करने में काफी श्रम उठाना पड़ा था। उन्होंने स्पष्ट ही अनुभव किया था कि यह छन्द 'शार्दूलविक्रीडित' का नामान्तर है। यहाँ इस बात का उल्लेख उनके मत मे कोई भ्राति दिखाने या संशोधन करने के उद्देश्य से नहीं किया जा रहा है। उन्होंने ठीक ही अनुमान किया था कि साटक शार्दूलविक्रीडित का नामान्तर है। मुझे इस शब्द पर विचार करने से एक दूसरी बात सूझी और यद्यपि यह थोड़ा अप्रासंगिक है, तो भी इस अध्ययन के लिये उपयोगी समझकर उसकी चर्चा कर रहा हूँ। प्राकृत-पिंगल मे शार्दूलविक्रीडित का लक्षण और उदाहरण दिया गया है और उसके बाद ही 'शद्द लसदृ' का लक्षण दिया हुआ है जो वस्तुतः एक ही छन्द हैं। श्रागे 'शार्दूलस्य लक्षणद्वयमेतत्' कहकर उपसहार किया गया है। टीका में 'सा' या 'साटक' छन्द के और भी कई भेद दिए गए हैं। यहॉ छन्द के हन भेदों की चर्चा करने से कोई लाभ नहीं है। मुझे सिर्फ सट्टक या साटफ शब्द से मतलब है। शार्दूलविक्रीडित का अनुवाद ही शार्दूल सट्टक होगा। वस्तुतः सहक एक प्रकार का नाटकमेद है। वह प्राकृत मे लिखी हुई नाटिका के समान ही होता है। कर्पूरमंजरी एक सहक है। इसके लेखक राजशेखर ने सूत्रधार के मुख से इसका लक्षण कहलवाया है। सूत्रधार कहता है कि जो लोग सहृदय या 'छहल्ल' (छविल ? या छैला! ) हैं अर्थात् विदग्ध हैं, उन्होंने कहा है, कि सट्टक वह