पृष्ठ:हिंदी साहित्य का आदिकाल.pdf/१२

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प्रथम व्याख्यान

मित्रों,

मैं बिहार राष्ट्रभाषा-परिषद् के प्रति अपनी आन्तरिक कृतज्ञता प्रकट करता हूँ, जिसने मुझे हिन्दी-साहित्य के आदिकाल के 'काव्यरूपों' के उद्भव और विकास की कहानी कहने का अवसर दिया है। यह काल नाना दृष्टियों से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। शायद ही भारतवर्ष के साहित्य के इतिहास में इतने विरोधों और स्वतोव्याघातों का युग कभी आया होगा। इस काल में एक तरफ तो संस्कृत के ऐसे बड़े-बड़े कवि उत्पन्न हुए, जिनकी रचनाएँ अलंकृत काव्य-परम्परा की चरम सीमा पर पहुंच गई थीं और दूसरी ओर अपभ्रंश के कवि हुए, जो अत्यन्त सहज-सरल भाषा में, अत्यन्त संक्षिप्त शब्दों मे, अपने मार्मिक मनोभाव प्रकट करते थे। श्रीहर्ष के नैषधचरित के अलंकृत श्लोकों के साथ हेमचन्द्र' के व्याकरण में आए हुए अपभ्रंश दोहों की तुलना करने से यह बात अत्यन्त स्पष्ट हो जायर्गा। फिर धर्म और दर्शन के क्षेत्र मे भी महान् प्रतिभाशाली आचार्यों का उद्भव इसी काल मे हुआ था और दूसरी तरफ निरक्षर संतों के ज्ञान-प्रचार का बीज भी इसी काल में बोया गया। आगे चलकर हम विस्तारपूर्वक इन बातों की चर्चा करने का अवसर पाएँगे। संक्षेप में इतना जान लेना यहाँ पर्याप्त है कि यह काल भारतीय विचारों के मंथन का काल है और इसीलिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। ___ यद्यपि हिन्दी साहित्य के इस काल की कहानी को स्पष्ट करने का प्रयत्न बहुत दिनों से किया जा रहा है तथापि उसका चेहरा अब भी अस्पष्ट ही रह गया है। पिछले बीसपच्चीस वर्षों में इस साहित्य के वास्तविक रूप का अन्दाजा लगाने में सहायता करने योग्य बहुत-सी नई सामग्री प्रकाशित हुई है और अब आशा की आनी चाहिए कि हमारे साहित्य का रूप अधिक साफ और सुदृश्य हो सकेगा। इस विषय पर मैंने जो कुछ थोडा सोचासमझा है उसे आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ। ___ आज से कोई अहसठ वर्ष पूर्व सन् १८८३ ई० मे शिवसिंह सेगर ने प्रथम बार हिन्दीसाहित्य के इतिहास का एक ढाँचा तैयार करने का प्रयास किया था। इस प्रयत्न के कोई छः वर्ष बाद सुप्रसिद्ध भापाविज्ञानी डॉ. (बाद मे सर) जार्ज ग्रियर्सन ने अंग्रेजी मे एक ऐसा ही प्रयत्न किया। उनकी पुस्तक का नाम है- 'माडर्न वरनाक्यूलर लिटरेचर अॉफ् नार्दन हिन्दुस्तान'। ये दोनों पुस्तके बहुत थोड़ी सामग्री के श्राधार पर लिखी गई थीं। इनमे कवियों और रचनाओं के विवरण संग्रह कर दिए गए थे; पर उनको किसी एक ही जीवन्त प्रवाह के चिहरूप में देखने का प्रयल नहीं था। उन दिनों यह बात