पृष्ठ:हिंदी साहित्य का आदिकाल.pdf/१२०

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पंचम व्याख्यान उन्होंने दुःख के साथ और दृढ़ता से घोषित किया कि-"कीन्हे प्राकृत जन गुन गाना, सिर धुन गिरा लगति पछताना " दुःख उस समय की सामाजिक हीनता के कारण था और दृढता अपनी शक्ति में विश्वास के कारण। वे इस प्रयत्न में लग गए कि इन 'प्राकृतजनगुणगानमूलक' काव्य-रूपों को राममय कर दिया जाय । वे खूब सफल हुए। उन दिनों जितने 'प्राकृतजनगुणगानमूलक' काव्य थे वे सभी गोस्वामीजी के प्रभावशाली काव्य से दब गए। सब काव्य-रूपों को तो शायद वे राममय नही कर पाए होंगे; पर अधिकाश क्षेत्रों में वे सफल रहे। उनके काव्य-प्रयत्नों को देखकर अनुमान किया जा सकता है कि उनके पूर्व की दो-तीन शताब्दियों मे किस जाति का साहित्य लिखा जा रहा था। गोस्वामीजी ने इन काव्यरूपों का उपयोग किया था- १ दोहा चौपाईवाले चरितान्य २ कवित-सवैया ३ दोहों मे अध्यात्म और धर्म-नीति के उपदेश ४ बरवं छन्द ५ सोहर छन्द ६ विनय के पद ७ लीला के पद ८ वीरकाव्यों के लिये उपयोगी छप्पय, तोमर, नाराच श्रादि की पद्धति ६ दोहों मे सगुन-विचार १० मंगल-काव्य ___ इनमे से कुछ रूपों के बारे मे तो निश्चर के साथ ही कहा जा सकता है कि ये रूप अवश्य वर्तमान थे। चरितकाव्य बहुत लिखे जा रहे थे। जायसी का पद्मावत और कुछ अन्य मुसलमान कवियों के चरितकाव्य प्राप्त हुए है। स्वयं जायसी ने अपने काव्य मे कुछ लौकिक कथानकों का उल्लेख किया है। इनमे मुग्धावती है, मृगावती है, मधुमालती है और प्रेमावती है । मृगावती और मधुमालती के नाम पर लिखे गए काव्यग्रन्यों का पता लगा है। जायसी से पूर्व की एक और प्राचीन प्रेम-कथा चंदायन या लौरचंदा भी प्रास हुई है। हो सकता है कि इन नायिकाओ के चरित को श्राश्रय करके कई-कई काव्य लिखे गए हो। उन दिनों के रसिया युवक इन कहानियों को वृद्धो की आँख बचाकर पढ़ते थे । सन् १६०३ ई० के श्रास-पास जैनकवि बनारसीदास ने अपना श्रात्मचरित 'अर्थक्रयानक' लिखा था, उसमे उन्होंने अपनी युवावस्था के इस कुकृत्य का वर्णन किया है। वे कहते हैं कि हाट- बाजार जाना बन्द करके मै मृगावती और मधुमालती की पोथियों पढा करता था ! सूफी कवियों ने इन अत्यन्त प्रचलित कहानियों में सूफियाना मर्मी भाव भरना चाहा। गोसाईजी को इन कहानी-उपखान के सहारे धर्मनिरूपण करनेवाले कलिकाल के अधम कवियो का पता था- साखी सब्दी दोहरा. कहि कहनी उपखान । भगति निरूपहि अधम कवि निंदहि वेद पुरान ॥