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हिन्दी-साहित्य का आदिकाल

हिन्दी साहित्य का श्रादिकाल इस प्रकार 'कहनी-उपखान' के द्वारा धर्मनिरूपण की प्रथा इस देश में नई भी नहीं है और अपरिचित भी नहीं है। गोस्वामीजी ने यह नहीं बताया कि ये 'कहानी-उपखान' कहनेवाले कवि सूफी ही थे या और कोई। सूफी भी हो सकते हैं, जैन भी और निर्गुण्यिा तो थे ही। ___ कवित्त-सवैया की प्रथा कब चली, यह कहना भी कठिन है। ये बजमापा के अपने छन्द हैं। सवैया का संधान तो कथंचित् संस्कृत-वृत्तों में मिल भी जाता है, पर कवित्त कुछ अचानक ही श्रा धमकता है। तुलसीदास ने जब इस छन्द का इतना उपयोग किया है तो इसका प्रचार निश्चय ही उन दिनों खूब रहा होगा। गंग, केशव आदि उनके समसाययिक कवियों ने जमकर इनका प्रयोग किया है। कवित्त अर्थात् धनाक्षरी । रासो मे कवित्त का अर्थ है छप्पय । चंद के नाम पर कुछ विशुद्ध ब्रजभाषा के घनाक्षरी छन्द चलते हैं, इनमें पृथ्वीराज का गुणानुवाद है। शिवसिंह ने अपने सरोज मै ऐसे कुछ छन्द उद्धृत किए थे। एक इस प्रकार है- मंडन मही के अरि खण्डे पृथिराज वीर तेरे डर वैरी वधू डॉग-डॉग डगे है। देश-देश के नरेश सेवत सुरेश जिमि काँफ्त फणेश सुनि वीर रस पगे हैं । तेरे स्तुतिमंडलनि कुण्डल विराजत हैं कहै कवि चंद यहि भाँति जेब जगे हैं। सिंधु के वकील संग मेरु के वकीलहिं लै मानहुँ कहत कछु कान आनि लगे हैं। भाषा से ये परवत्ती लगते हैं। साहित्य मे इस छन्द का प्रवेश एकदम अचानक हुआ है। मूलतः ये बन्दीजन के छन्द है। संभवतः उसी परम्परा मे इसका मूल भी मिले। जिस प्रकार श्लोक लौकिक संस्कृत का, गाथा प्राकृत का और दोहा अपभ्रंश का अपना छन्द है उसी प्रकार कवित्र-सवैया व्रजभाषा के अपने छन्द हैं । जिसे हिन्दी का आदिकाल कहा जाता है उसमें इस छन्द का प्रचार निश्चय ही हो गया था। बरवै अवधी का अपना छन्द है। कुछ कवियों ने इसका उत्तम प्रयोग किया है। पर यह आगे चलकर उतना लोकप्रिय नहीं हो सका है। सोहर अब भी लोकगीत के रूप मे जी रहा है। साहित्य मे तुलसीदास के पहले इसका प्रयोग अबतक नहीं प्राप्त हुआ। ___ 'दोहा' अपभ्रंश का लाइला छन्द है, यह पहले ही बताया जा चुका है। सातवीं शताब्दी के बाद भारतीय साहित्य में इसका दर्शन होता है। प्रवेश तो इसका बहुत पहले ही हो चुका था, पर सातवीं-आठवीं शताब्दी में इसने श्रृंगार को, बीर को, धर्म को और नीति को लोकचित्त में प्रवेश कराने का व्रत लिया। धर्म के क्षेत्र में जो इन्दु और रामसिंह के मर्मी उपदेशों को इसने प्रचारित किया, सरह, कन्ह, तिल्लोपा आदि बौद्ध सिद्धों की रहस्यवादी भावनाओं का वाहन बना, गोरखनाथ जैसे अलख जगानेवालों का सहायक हुश्रा और कबीर जैसे फक्कड़ का सन्देशवाहक बना। शृगारक्षेत्र मे इसकी दुन्दुभी बहुत पहले