पृष्ठ:हिंदी साहित्य का आदिकाल.pdf/१८

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प्रथम व्याख्याने इधर सन् १९४५ ई० मे राहुलजीने 'हिन्दी-काव्य-धारा' नाम से एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अपभ्रंश-काव्यों का संग्रह प्रकाशित कराया है। उनके मत से यह अपभ्रंश वस्तुतः पुरानी हिन्दी ही है। इसमें उन्होंने प्रथम बार स्वयम्भू के रामायण की उस हस्तलिखित प्रति से, जो भाण्डारकर-रिसर्च-इन्स्टीट्यूट में सुरक्षित है और अब अंशतः प्रकाशित हो चुकी है, कवित्वपूर्ण अंशों का संकलन प्रकाशित कराया है और बहुत जोर देकर कहा है कि स्वयंभू हिन्दी का सर्वोत्तम कवि है । दूसरा स्थान उन्होंने पुष्पदंत को दिया है। मेरा अनुमान है कि यह पुष्पदंत हिन्दी के पुराने इतिहासकारों के निकट परिचित थे। शिवसिंह ने टाड के राजस्थान के आधार पर लिखा था कि "संवत् सात सौ सत्तर विक्रमादित्य में राजा मान अवन्तीपुरी का बड़ा पडित अलकार-विद्या मे अद्वितीय था। उसके पास पुष्पभाट ने प्रथम संस्कृत-ग्रन्थ पढ पीछे भाषा मे दोहा बनाये। हमको भाषा की जड यही कवि मालूम होता है।" जान पडता है, पुष्पदत जिस राष्ट्रकूट राजा कृष्णराज के आश्रित थे, उनकी राजधानी 'मान्यखेट" पर से राजा का नाम 'मान' समझ लिया गया है और सभाकवि होने के कारण उन्हें भाट कह दिया गया है। जो हो, राहुलजी की इस दृढकण्ठ घोषणा के कारण हिन्दी के साहित्यिकों का ध्यान अपभ्रश की ओर खिचा है। राहुलजी के प्रयत्नो का यह शुभ परिणाम है। राहुलजी ने इन कवियों की रचनाएँ अपने संग्रह मे उद्धृत की हैं और इनकी भापा को पुरानी हिन्दी माना है- आठवीं शती नवी० दसवीं० ग्यारहवी. बारहवीं० तेरहवीं० सरहपा लुइपा देवसेन एक अज्ञात कवि हेमचन्द्र लक्षण सबरपा विरुपा तिलोपा अब्दुर्रहमान हरिभद्रः जज्जल स्वय डोंत्रिपा पुष्यदर बब्बर अज्ञात कवि अज्ञात भूसुकपा दारिकपा शान्तिपा कनकामरमुनि श्रामभट्ट अपदेवसूरि गुण्डरीपा योगीन्दु जिनदत्त सूरि शालिभद्र हरिब्रह्म गोरक्षपा रामसिंह विद्याधर दो अज्ञात कवि टेएटएपा धनपाल सोमप्रभ राजशेखर सूरि महीया जिनपद्म भादेपा विनयचन्द्र धामपा चंद १. राष्ट्रकूट-वंश का राजा कृष्ण (तृतीय) बहुत ही पराक्रमी राजा था। उसका राज्य मालदा और गुजरात तक फैला हुआ था। परमारों के राजा सीयक (श्रीहर्ष) ने कमी इसके विरुद्ध विद्रोह किया था, किन्तु कृष्ण जवतक जीवित था, तवतक परमारों को उसने सिर नहीं उठाने दिया। मारसिंह कृष्ण का उत्तरी सेना का प्रधान सेनापति था। हेली केरटी के शिला- लेखो (सन् ९६५-९६०) में इस मारसिंह के अधीनस्थ एक सैनिक को 'उज्जयिनी-भुजंग' कहा गया है। इससे से भी पता चलता है कि उज्जयिनी पर मान्यखेट (मान) का शासन था। हो सकता है कि वाद में मान के कवि 'पुष्फ का यश मात्र अवशिष्ट रह गया हो और पूरी कहानी भुला दी गई हो। परन्तु यह अनुमान-ही-शनुमान है।