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हिन्दी-साहित्य का आदिकाल

१६ हिन्दी साहित्य का आदिकात जहा, पिंघउ दिढ सरणाह बाह उप्पर पक्खर दइ । बंधु समदि रण धसउ सामि हम्मीर पण लइ । उडुल गहपह भमउ खग्ग रिउ सीसहि डार । पक्खर पक्खर ठेल्लि पेल्लि पन्वश्र अप्फालउ॥ हम्मीर कज्जु जज्जल भणइ कोहागल मुहमह जलउ । सुरताण-सीस करवाल दइ तेज्जि कलेवर दिन चलउ॥ (छाया) पहिन्यौ दृढ सन्नाह बाजि ऊपर पक्खर दै। बन्धु समद रण धस्यौ स्वामि हम्मीर वचन ले ।। उड्डित नभ-पथ ब्रम्यौ खड्ग रिपु सीसहिं डारयो । पक्खर-पक्खर ठेलि-पेलि पर्वत उच्चारयौ । हमीर-काज जज्जल भरी क्रोधानल मुह मंह जल्यो। सुलतान-सीस करवाल दै तेजि कलेवर दिवि चल्यो। राहुलजी का यह मत प्राकृतपैङ्गलम् (विब्लियोथिका इंडिका) में प्रकाशित टीकाओं के 'जज्जलस्य उक्तिरियम्', अर्थात् यह जज्जल की उक्ति है—पर आधारित जान पड़ता है। टीकाकारों के इस वाक्य का अर्थ यह भी हो सकता है कि यह जज्जल की कविता है और यह भी हो सकता है कि यह किसी अन्य कवि द्वारा निबद्ध पात्र जज्जल की उक्ति है, अर्थात् 'कवि-निबद्ध वक्तृ-प्रौढोक्ति' है। यदि दूसरा अर्थ लिया जाय तो रचना जज्जल की नहीं, किसी और कवि की होगी, परन्तु वह और कवि शाङ्गधर ही है, इसका कोई सबूत नहीं। इतना अवश्य है कि यह उक्ति किसी ऐसे काव्य से उद्धृत है, जिसमे वीररस का प्रसग अवश्य था । फिर यदि प्राकृतपैडलम् के एक कवि के अन्य को वीरगाथाकाल का अन्य समझा जाय तो उसी ग्रन्थ मे से बब्बर, विद्याधर और अन्य अज्ञात कवियों की रचनाओं को भी उस काल की रचना मानकर विवेच्य क्यों न समझा जाय ! प्राचीन गुर्जर-काव्यों मे भी अनेक कवियों की रचनाएँ ऐसी है, जिन्हें थोड़ा-बहुत हिन्दी से सम्बद्ध समझकर इस काल के विषय मे विचार किया जा सकता है। हमारे कहने का मतलब यह है कि या दो हम्मीर रासो नोटिस मात्र समझा जाय या प्राकृतपैङ्गलम् में उदधृत सभी रचनाओं को इस अनुमाना- धारित अन्य के समान ही इस काल की प्रकृति और सशा के निर्णय का उपयुक्त साधन समझा जाय । इसके अतिरिक्त एक और बात भी विचारणीय है । 'हम्मीर' नाम इस देश मे किसी एक ही राजा के लिए नहीं व्यवहृत दुश्रा है । गजनी के तुर्क शासकों को 'अमीर' कहा जाता था। इस देश में 'हम्मीर' इसी 'अमीर' का संस्कृतायित रूप है। बुखार का प्रथम अमीर 'उन्सद' नवीं शताब्दी मे हुआथा। जबसे इन अमीरों ने गजनी के ब्राह्मण राजा शाहियों को हराकर गजनी पर अधिकार किया तभी से इस देश मे हम्मीर शब्द प्रचलित हो गया। १. समाह-कवच । २. पक्सर = अश्व संनाह, घोड़े का कवच ।