पृष्ठ:हिंदी साहित्य का आदिकाल.pdf/४

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के तत्वावधान में हुआ था। पहले और दूमरे साल के अन्य भाषण भी यथाक्रम शीघ्र ही प्रकाशित होंगे। उनके प्रकाशित हो जाने पर ही यह विदित हो सकेगा कि परिपद् के द्वारा आयोजित भाषणमाला का साहित्यिक महत्त्व क्या है और उससे हिन्दी-साहित्य कहाँ तक समृद्ध हो सकता है। उक्त मापणों के अतिरिक्त कई स्वतत्र मौलिक ग्रन्थ भी प्रकाशित होंगे। परिषद् के प्रकाशनाधिकारी श्रीअनूपलाल मण्डल बडी लगन से उनके प्रकाशन में तत्पर हैं, जो उनका कर्तव्य ही है । हिन्दी-साहित्य का आदिकाल अबतक प्रायः अधकार के आवरण से ढका-सा रहा है। इस आवरण को हटाकर अंधकार में प्रकाश फैलाने का प्रथम प्रयत्न सभवतः श्राचार्य द्विवेदीजी ने ही किया है। उनका यह शुम प्रयत्न कहाँ तक सफल हुअा है, इसका यथार्थ निर्णय विद्वत्-समाज ही कर सकेगा। हमे विश्वास है कि उनका यह सत्प्रयास उनको महान् गौरव प्रदान करेगा, और इस प्रकार हिन्दी-साहित्य के प्रारभिक युग को अंधकार से प्रकाश मै लाने के श्रेय का कुछ अश इम परिषद् को भी प्राप्त होगा। परिपद के द्वारा प्रकाशित होनेवाले ग्रन्थी का श्राकार-प्रकार एक-सा रखने का निश्चय किया गया है। ग्रन्थों के मुद्रण मे शब्दों की एकरूपता को भी रक्षित रखना हिन्दी-हित की दृष्टि से परिपद् को अभीष्ट है; किन्तु परिपद् को यह अमीष्ट नहीं है कि वह दुराग्रहवश अपने विद्वान् लेखको की स्वतत्रता मे किसी प्रकार का हस्तक्षेप करे । इसी कारण इस प्रथ की लिपि-शैली मे इसके अधिकारी लेखक की इच्छा को ही प्रधानता दी गई। जबतक हिन्दी के सर्वमान्य विद्वान् हिन्दी मे प्रयुक्त होनेवाले शब्दों की एकरूपता के सम्बन्ध में कोई सिद्धान्त निश्चित नहीं करते और वह सिद्धान्त लोकप्रियता प्राप्त नहीं करता, तबतक परिपद् भी इस विषय मे बरबम कोई श्राग्रह नहीं करना चाहती। श्रीकृष्णजन्माष्टमी सं० २००९ अगस्त, १९५२ ई० शिवपूजन सहाय परिषद-मंत्री