पृष्ठ:हिंदी साहित्य का आदिकाल.pdf/४२

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द्वितीय व्याख्यान पुस्तक राजकुमारों को काशी-कान्यकुब्ज की भाषा सिखाने के उद्देश्य से लिखी गई थी। यदि यह अनुमान सत्य हो तो मानना पड़ेगा कि इन राजकुमारों को घर में किसी और भाषा के बोलने की आदत थी । अर्थात्, गाहड़वाल बाहर से पाए थे । परन्तु यहाँ से इस वंश मे देशी भाषा की ओर झुकने की प्रवृत्ति आई थी, यह भी पर्याप्त स्पष्ट है। काशी- कान्यकुब्ज-दरबार मे एक बहुत ही प्रवीण और विद्यावन्त मन्त्री थे, जिनका नाम विद्याधर था । उन्हें 'प्रबन्धचिन्तामणि' मे जयचन्द्र का मंत्री तथा 'सर्वाधिकार भारधुरन्धर' और 'चतुर्दश विद्याधर कहा गया है। इस कवि की कुछ कविताएँ 'प्राकृतपैङ्गल में मिल जाती हैं जो बताती हैं कि जयचन्द्र के दरबार में विद्वान् मन्त्रिगण मी देशभाषा मे रचना करते थे । यह रचना राजस्तुतिपरक है, इसलिए यह मानने में भी कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि जयचन्द्र इन रचनाओं का मान करते थे | एक कविता इस प्रकार है- भन भंजिन बङ्गा भग्गु कलिंगा तेलंगा रण मुक्कि चले मरहट्ठा विट्ठा लग्गिा कट्टा सोरट्ठा मा पाथ पले चंपारण कंपा पव्वय झंपा ओत्या ओत्थी जीव हरे काशीसर राणा किअउ पत्राणा विजाहर भण मंतिवरे।। -प्राकृतपैङ्गल, २४४ यह विद्याधर जयचद्र के बहुत अधिक विश्वासपात्र थे और केवल फधि ही नहीं, कविता के बड़े सुन्दर मर्मज्ञ भी थे । पुरातन प्रबंध-संग्रह में इनकी उदारता और चतुरता की अनेक कहानियों मिलती है। कहते हैं, एक बार राजा जयचन्द्र को जब मालूम हुआ कि परमर्दी 'कोपकालाग्निरुद्र', 'अबव्यकोपप्रसाद' और 'रायद्रहबोल' (8) श्रादि विरुद धारण कर रहा है तो उसने कटक साजकर उसकी राजधानी (कल्याणकटक) को घेर लिया और साल भर तक धेरा डाले पड़ा रहा। परमर्दी ने अपने मंत्री उमापतिघर को बुलाकर कहा कि कुछ ऐसा करो, जिससे जयचंद्र अपनी सेना हा ले । उमापतिघर ने 'जो श्राजा' कहकर प्रस्थान किया। वह सायकाल सीधे मत्री विद्याधर' के पास पहुंचा और एक सुभाषित लिखकर मंत्री के पास मिलवा दिया- उपकारसमर्थस्य तिष्ठन् कार्यातुरः पुरः। मूर्त्या यामातिमाचष्टे न तां कृपणया गिरा ।। [कार्यायी उपकार करने में समर्थ व्यक्ति के सामने पहुंचकर जितना अपनी सूरत से कह जाता है, उतना वह कृपण वाणी से नहीं कह सकता।] यह श्लोक विद्याधर के मन में चुभ गया । उस समय राजा जयचन्द्र सो रहा था । पलग समेत उसे उसी समय उठवाकर मत्री ने किले से पांच कोस दूर पहुँचवा दिया। सबेरे उठकर राजा देखता है तो वह किले से बाहर पहा हुआ है। सेना भी नहीं है । केवल विद्याधर