हिन्दी-साहित्य का आदिकाश मत्री सामने वहा है। विद्याधर से पूछा और उसने सब ठीक-ठीक कह दिया। राजा बहुत क्रुद्ध हुआ । विद्याधर ने कहा, महाराज, क्रोध क्यों कर रहे हैं ? मैं ब्राह्मण हूँ, मेरी कण-वृत्ति तो बनी हुई है । चलता हूँ | राजा घबराया। बोला, मैं तुमपर इसलिए नाराज नहीं हूँ कि तुमने इतना सब क्यों किया, बल्कि इसलिये नाराज हूँ कि तुमने मेरी लीला को बिगाह दिया। इस सुभापित पर तुमने मेरा सारा राज्य क्यों नहीं दे दिया ! परमर्दी को जब यह बात मालूम हुई तो उसने उन विरुदों को त्याग दिया। राजा ने उसका सब-कुछ लौटा दिया और घर लौट आया । राजशेखर सूरि-कृत प्रबन्धनोप मे थोडे परिवर्तन के साथ यही कहानी लक्ष्मणावतीपुरी के राजा लक्ष्मणसेन और उनके मत्री कुमारदेव के पराभव के रूप मे कही गई है। उक्त पुस्तक के अनुसार जयन्त चद्र (जयचद्र) ने कालिंजर गढ़ का नहीं, बल्कि लक्ष्मणावतीपुरी का घेरा डाला था। ये कहानियों विद्याधर के निर्मीक चरित्र, उदार हृदय और जयचद्र की विश्वासपात्रता की सूचक हैं । इतना उदार और प्रभावशाली मंत्री देशी भाषा मे कविता लिखता था, यही इस बात का सबूत है कि अाखिरी दिनों मे गाहडवाल- दरबार मे और दरबारों की ही मोति भाषा-कविता का सम्मान होने लगा था। परन्तु ठीक उसी समय दुर्भाग्य का आक्रगण हुआ और गाहडवाल-साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया । पं० रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है कि जयचन्द्र के दरबार मे भट्ट केदार थे, जिन्होंने 'जयचन्द्रप्रकाश' नामक एक प्रथ लिखा था, जो अब नहीं मिलता। शुक्लजी ने एक 'भट्ट भणन्त, की चर्चा की है। जिसमे केदार को शहाबुद्दीन गोरी का दरबारी कवि बताया गया है; पर वे इस 'भट्ट भणन्त' को विश्वासयोग्य नहीं मानते। परन्तु रासो के अहावनवे समय मे सचमुच ही एक दुर्गा केदारभट्ट की एक विस्तृत चर्चा है जो शहाबुद्दीन के दरवार से श्राया था और कवि चंद के साथ उसका केवल वाग्युद्ध ही नहीं हुआ था, बल्कि तंत्र-मत्र के जोर की आजमाइश भी हुई थी। इस प्रकार यह बात केवल भट्ट भणन्त नहीं है, किसी पुरानी अनुश्रुति की स्मारक है। इसी प्रकार रासो के उन्नीसवे समय में माधो भाट को शहाबुद्दीन का राजकवि बताया गया है। यह व्यक्ति शहाबुद्दीन का विश्वासपात्र था और वह पृथ्वीराज के दरबार की गुप्त खबरें संग्रह कर रहा था। वह कई भाषाएँ बोल सकता था। हिन्दुःनो से तो हिन्दुओं की भाषा बोलता था और मुसलमानों से मुसलमानों की। जो जैसे समझ सकता था, उसे मावो भाट उसी प्रकार समझा देता था- हिन्दू हिन्दु बचने रचने मेच्छाय मेच्छयं वचनं । जं जं जेम समुज्झै तं तं समुझाय माधवं भट्ट ॥ १. प्रथम विधाता ते प्रगट भए बन्दीजन पुनि पृथुजश ते प्रकास सरसान है। माने सूत सौनकन बाँचक पुरान रहे, जस को बखान महासुख सरसान है। चंद चौहान के केदार गोरी साह जू के, जंग अकबर के बखाने गुनगान है। कान्य कैसे मांस अजनास धनमॉटन को लूटि धरै ताको खुरा खोज मिटि जान है।